आदरणीय,

यहां हमने उन विद्यार्थियों के लिए, उन उद्यमियों के लिए, उन पेशेवरों के लिए जो कुछ पाना तो चाहते हैं लेकिन हिम्मत नहीं करते कुछ प्रेरणादायक कविताओं का संकलन किया है | 

यह कविताएं आपको कुछ याद दिलाना चाहती हैं, आपको आपकी औकात बताना चाहती हैं कि आप किसी से कम नहीं है, बस हौसले को कम मत करिए | 

आप जो सोचते हैं,  सोचते हैं और सोचते हैं, बार-बार सोचते हैं और प्रकृति आपको सहायता करती है | आपके लिए नए रास्ते की तलाश करती है लेकिन पहल आपको करनी होगी | आपको आपके सपनों को जिंदा रखना होगा एवं उसे पाने के लिए जिद्द करनी होगी | प्रकृति को आपकी जिद के आगे झुकना होगा और यदि आपने जिद नहीं छोड़ी तो आपको सफलता अवश्य मिलेगी |

Rhonda Byrne ने द सीक्रेट में आकर्षण के नियम मैं बताया है कि आप जैसा सोचेंगे ज़िंदगी वैसी हो जाएगी।

आकर्षण के कानून के तहत, ब्रह्मांड का पूरा क्रम निर्धारित होता है, जिसमें आपके जीवन में आने वाली हर चीज और आपके द्वारा अनुभव की जाने वाली सभी चीजें शामिल हैं।  यह आपके विचारों की चुंबकीय शक्ति के माध्यम से ऐसा करता है।

अत्याधुनिक विज्ञान ने पुष्टि की है कि हर विचार ऊर्जा से बना है और इसकी अपनी अनूठी आवृत्ति है।  और जब किसी एकल विचार की यह ऊर्जा और आवृत्ति ब्रह्मांड में बाहर निकलती है, तो यह स्वाभाविक रूप से भौतिक दुनिया के साथ बातचीत करती है। आपका विचार ऊर्जा और आवृत्तियों को आकर्षित करता है, और उन चीजों को वापस आपके पास खींचता है।

ओम शांति ओम में आपने यहां जरूर सुना होगा -

“अगर किसी  चीज़  को  दिल  से  चाहो  तो  सारी  कायनात  उसे  तुम  से  मिलाने  में  लग  जाती  है” -  इसी  सिद्धांत को लॉ ऑफ अट्रैक्शन कहा जाता है, आपकी सोच हकीकत बनती है | आप अपने जीवन की कुछ घटनाओं का स्मरण करें | यदि आपने दृढ़ निश्चय किया था कि हम यह करके रहेंगे तो वह आपने अवश्य पा लिया है और जिन चीजों में आपको संदेह रहा है उसके लिए अभी भी आप सोच रहे होंगे अर्थात आप उस सपने को पूरा करने से कोसों दूर हैं |

जब हम कुछ गुनगुनाते हैं तो हमें बार-बार कुछ करने के लिए प्रेरित किया जाता है मस्तिष्क हमें बार-बार उसे सोचने के लिए मजबूर करती है | एक नई ऊर्जा का संचार होता है | 

आत्म बल के सहारे सब कुछ प्राप्त करना संभव है | जो दूसरे कर सकते हैं हम भी कर सकते हैं क्योंकि प्रकृति ने भौतिक संरचना सभी को बराबर दी है एक नहीं सैकड़ों सफल लोगों के नाम आपको याद होंगे | जब लोगों ने जीरो से शुरू किया और आज वहां सफलता की बुलंदियों को छू रहे हैं | असंभव कुछ नहीं है बस हमें अपने आप को यह समझाना होगा कि हम यह कर सकते हैं और करके रहेंगे |

दशरथ मांझी पर आधारित फिल्म अपने अवश्य देखी होगी | यह कोई कपोल काल्पनिक कथा नहीं है बल्कि यह हकीकत है | असंभव से प्रतीत होते हुए कार्य को एक व्यक्ति के दृढ़ निश्चय के कारण कर लिया गया एवं पर्वत को भी झुकना पड़ा | फिल्म द माउंटेन मैन ने मुझे बहुत प्रभावित किया | उसके कुछ डायलॉग डायलॉग मात्र नहीं है बल्कि उसमें बहुत अर्थ एवं गुढ से रहस्य छिपे हुए हैं | उन डायलॉग को मैं अपने अगली पोस्ट में डी-कोड करूंगा जो कि अभी लिख रहा हूं |

हमें कुछ पाने के लिए सपने देखने होते हैं तो हमें उस सपने को पूरा करने के लिए नींद का त्याग करना पड़ेगा | 

दोस्तों "सपने वो नहीं है जो हम नींद में देखते है सपने वो है जो हमको नींद नहीं आने देते"- डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम (मिसाइल मैन)

जब आप किसी चीज के पाने के लिए पागल हो जाएंगे तो वह आपको मिल कर रहेगी बस अपने को मजबूत बनाना है किसी ने सच कहा है - "खुदी को कर बुलंद इतना के हर तकदीर से पहले खुदा बन्दे से खुद पूछे के बता तेरी रज़ा क्या है" - अज्ञात

दुष्यंत कुमार ने क्या खूब कहा है - कौन कहता है कि आसमां में सुराख नहीं हो सकता। एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों।'

दोस्तों प्रस्तुत है आपके लिए कुछ प्रमुख कविताएं जिन्हें मैंने विभिन्न माध्यमों से एकत्रित किया है |

1. कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती –

कवि – सोहन लाल द्विवेदी |

लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती

कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती

नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चढ़ती है

चढ़ती दीवारों पर सौ बार फ़िसलती है

मन का विश्वास रगों में साहस भरता है

चढ़कर गिरनागिरकर चढ़ना  अखरता है

मेहनत उसकी बेकार नहीं हर बार होती

कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती

डुबकियाँ सिंधु में गोताखोर लगाता है

जा-जा कर खाली हाथ लौट कर आता है

मिलते  सहज ही मोती गहरे पानी में

बढ़ता दूना विश्वास इसी हैरानी में

मुट्ठी उसकी खाली हर बार नहीं होती

कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती

असफ़लता एक चुनौती हैस्वीकार करो

क्या कमी रह गई देखो और सुधार करो

जब तक  सफल होनींद-चैन को त्यागो तुम

संघर्षों का मैदान छोड़ मत भागो तुम

कुछ किये बिना ही जय-जयकार नहीं होती

कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती



2. कोशिश कर, हल निकलेगा

कवि आनंद परम

 

कोशिश कर, हल निकलेगा

आज नहीं तो, कल निकलेगा.

अर्जुन के तीर सा सध

मरूस्थल से भी जल निकलेगा.

मेहनत कर, पौधों को पानी दे

बंजर जमीन से भी फल निकलेगा.

ताकत जुटा, हिम्मत को आग दे

फ़ौलाद का भी बल निकलेगा

जिंदा रख, दिल में उम्मीदों को

गरल के समंदर से भी गंगाजल निकलेगा.

कोशिशें जारी रख कुछ कर गुजरने की

जो है आज थमा-थमा सा, चल निकलेगा



3.  नर हो, निराश करो मन को

कवि स्व. मैथलीशरण गुप्त |

नर हो, निराश करो मन को

कुछ काम करो, कुछ काम करो

जग में रहकर कुछ नाम करो

यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो

समझो जिसमें यह व्यर्थ हो

कुछ तो उपयुक्त करो तन को

नर हो, निराश करो मन को.



संभलो कि सुयोग जाय चला

कब व्यर्थ हुआ सदुपाय भला

समझो जग को गिरा सपना

पथ आप प्रशस्त करो अपना

अखिलेश्वर है अवलंबन को

नर हो, निराश करो मन को.



जब प्राप्त तुम्हें सब तत्व यहाँ

फिर जा सकता वह सत्त्व कहाँ

तुम स्वत्त्व सुधा रस पान करो

उठके अमरत्व विधान करो

दवरूप रहो भव कानन को

नर हो, निराश करो मन को.



निज गौरव का नित ज्ञान रहे

हम भी कुछ हैं यह ध्यान रहे

मरणोत्तर गुंजित गान रहे

सब जाय अभी पर मान रहे

कुछ हो तजो निज साधन को

नर हो, निराश करो मन को.



प्रभु ने तुमको कर दान किए

सब वांछित वस्तु विधान किए

तुम प्राप्त करो उनको अहो

फिर है यह किसका दोष कहो

समझो अलभ्य किसी धन को

नर हो, निराश करो मन को.



किस गौरव के तुम योग्य नहीं

कब कौन तुम्हें सुख भोग्य नहीं

जान हो तुम भी जगदीश्वर के

सब है जिसके अपने घर के

फिर दुर्लभ क्या उसके जन को

नर हो, निराश करो मन को



करके विधि वाद खेद करो

निज लक्ष्य निरंतर भेद करो

बनता बस उद्यम ही विधि है

मिलती जिससे सुख की निधि है

समझो धिक् निष्क्रिय जीवन को

नर हो, निराश करो मन को

कुछ काम करो, कुछ काम करो.




4. रश्मिरथी से वो पंक्तियां जो कठिन समय में हौसला देती हैं...

- रामधारी सिंह "दिनकर"

सच है, विपत्ति जब आती है,
कायर को ही दहलाती है,
शूरमा नहीं विचलित होते,
क्षण एक नहीं धीरज खोते,
विघ्नों को गले लगाते हैं,
काँटों में राह बनाते हैं।

मुख से कभी उफ़ कहते हैं,
संकट का चरण गहते हैं,
जो पड़ता सब सहते हैं,
उद्योग-निरत नित रहते हैं,
शूलों का मूल नसाने को,
बढ़ खुद विपत्ति पर छाने को।

है कौन विघ्न ऐसा जग में,
टिक सके वीर नर के मग में
खम ठोंक ठेलता है जब नर,
पर्वत के जाते पाँव उखड़
मानव जब जोर लगाता है,
पत्थर पानी बन जाता है।

गुण बड़े एक से एक प्रखर,
हैं छिपे मानवों के भीतर,
मेंहदी में जैसे लाली हो,
वर्तिका-बीच उजियाली हो।
बत्ती जो नहीं जलाता है
रोशनी नहीं वह पाता है।

पीसा जाता जब इक्षु-दण्ड,
झरती रस की धारा अखण्ड,
मेंहदी जब सहती है प्रहार,
बनती ललनाओं का सिंगार
जब फूल पिरोये जाते हैं,
हम उनको गले लगाते हैं।

वसुधा का नेता कौन हुआ?
भूखण्ड-विजेता कौन हुआ?
अतुलित यश क्रेता कौन हुआ?
नव-धर्म प्रणेता कौन हुआ?
जिसने कभी आराम किया,
विघ्नों में रहकर नाम किया।
जब विघ्न सामने आते हैं,
सोते से हमें जगाते हैं,

मन को मरोड़ते हैं पल-पल,
तन को झँझोरते हैं पल-पल
सत्पथ की ओर लगाकर ही,
जाते हैं हमें जगाकर ही।

वाटिका और वन एक नहीं,
आराम और रण एक नहीं
वर्षा, अंधड़, आतप अखंड,
पौरुष के हैं साधन प्रचण्ड
वन में प्रसून तो खिलते हैं,
बागों में शाल मिलते हैं।

कङ्करियाँ जिनकी सेज सुघर,
छाया देता केवल अम्बर,
विपदाएँ दूध पिलाती हैं,
लोरी आँधियाँ सुनाती हैं
जो लाक्षा-गृह में जलते हैं,
वे ही शूरमा निकलते हैं।

बढ़कर विपत्तियों पर छा जा,
मेरे किशोर! मेरे ताजा!
जीवन का रस छन जाने दे,
तन को पत्थर बन जाने दे
तू स्वयं तेज भयकारी है,
क्या कर सकती चिनगारी है?


5. खड़ा हिमालय बता रहा है

-सोहनलाल द्विवेदी

खड़ा हिमालय बता रहा है डरो आँधी-पानी में

डटे रहो तुम अपने पथ पर कठिनाई तूफ़ानो में

डिगो अपने पथ से जो तुम सब कुछ पा सकते हो प्यारे

तुम भी ऊँचे उठ सकते हो छू सकते नभ के तारे

अचल रहा जो अपने पथ पर लाख मुसीबत आने में

मिली सफलता जग में उसको जीने में मर जाने में

चाहे जो बाधाएँ आई रहा सभी में अडिग हिमालय

इसलिए तो सारे जग में हुआ सभी से बड़ा हिमालय।


 

6. वरदान माँगूँगा नहीं - 

शिवमंगल सिंह सुमन

यह हार एक विराम है
जीवन महासंग्राम है
तिल-तिल मिटूँगा पर दया की भीख मैं लूँगा नहीं।
वरदान माँगूँगा नहीं।।

स्मृति सुखद प्रहरों के लिए
अपने खंडहरों के लिए
यह जान लो मैं विश् की संपत्ति चाहूँगा नहीं।
वरदान माँगूँगा नहीं।।

क्या हार में क्या जीत में
किंचित नहीं भयभीत मैं
संधर्ष पथ पर जो मिले यह भी सही वह भी सही।
वरदान माँगूँगा नहीं।।

लघुता अब मेरी छुओ
तुम हो महान बने रहो
अपने हृदय की वेदना मैं व्यर्थ त्यागूँगा नहीं।
वरदान माँगूँगा नहीं।।

चाहे हृदय को ताप दो
चाहे मुझे अभिशाप दो
कुछ भी करो कर्तव् पथ से किंतु भागूँगा नहीं।
वरदान माँगूँगा नहीं।।



7. कुछ सपनों के मर जाने से, जीवन नहीं मरा करता है।

गोपालदास नीरज

छिप-छिप अश्रु बहाने वालों, मोती व्यर्थ बहाने वालों

कुछ सपनों के मर जाने से, जीवन नहीं मरा करता है।


सपना क्या है, नयन सेज पर
सोया हुआ आँख का पानी
और टूटना है उसका ज्यों
जागे कच्ची नींद जवानी

गीली उमर बनाने वालों, डूबे बिना नहाने वालों
कुछ पानी के बह जाने से, सावन नहीं मरा करता है।

माला बिखर गयी तो क्या है
खुद ही हल हो गयी समस्या
आँसू गर नीलाम हुए तो
समझो पूरी हुई तपस्या

रूठे दिवस मनाने वालों, फटी कमीज़ सिलाने वालों
कुछ दीपों के बुझ जाने से, आँगन नहीं मरा करता है।

खोता कुछ भी नहीं यहाँ पर
केवल जिल्द बदलती पोथी
जैसे रात उतार चांदनी
पहने सुबह धूप की धोती

वस्त्र बदलकर आने वालों! चाल बदलकर जाने वालों!
चन्द खिलौनों के खोने से बचपन नहीं मरा करता है।

लाखों बार गगरियाँ फूटीं,
शिकन आई पनघट पर,
लाखों बार किश्तियाँ डूबीं,
चहल-पहल वो ही है तट पर,

तम की उमर बढ़ाने वालों! लौ की आयु घटाने वालों!
लाख करे पतझर कोशिश पर उपवन नहीं मरा करता है।

लूट लिया माली ने उपवन,
लुटी लेकिन गन्ध फूल की,
तूफानों तक ने छेड़ा पर,
खिड़की बन्द हुई धूल की,

नफरत गले लगाने वालों! सब पर धूल उड़ाने वालों!
कुछ मुखड़ों की नाराज़ी से दर्पन नहीं मरा करता है!



8.  हो जाय पथ में रात कहीं,

हरिवंशराय बच्चन

हो जाय पथ में रात कहीं,
मंज़िल भी तो है दूर नहीं
यह सोच थका दिन का पंथी भी जल्दी-जल्दी चलता है!
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!

बच्चे प्रत्याशा में होंगे,
नीड़ों से झाँक रहे होंगे
यह ध्यान परों में चिड़ियों के भरता कितनी चंचलता है!
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!

मुझसे मिलने को कौन विकल?
मैं होऊँ किसके हित चंचल? –
यह प्रश्न शिथिल करता पद को, भरता उर में विह्वलता है!
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!

 

9. जो बीत गई सो बात गई 

हरिवंश राय बच्चन

जीवन में एक सितारा था

माना वह बेहद प्यारा था

वह डूब गया तो डूब गया

अंबर के आंगन को देखो

कितने इसके तारे टूटे

कितने इसके प्यारे छूटे

जो छूट गए फ़िर कहाँ मिले

पर बोलो टूटे तारों

कब अंबर शोक मनाता है

जो बीत गई सो बात गई


जीवन में वह था एक कुसुम

थे उस पर नित्य निछावर तुम

वह सूख गया तो सूख गया

मधुबन की छाती को देखो

सूखी कितनी इसकी कलियाँ

मुरझाईं कितनी वल्लरियाँ

जो मुरझाईं फ़िर कहाँ खिलीं

पर बोलो सूखे फूलों पर

कब मधुबन शोर मचाता है

जो बीत गई सो बात गई


जीवन में मधु का प्याला था

तुमने तन मन दे डाला था

वह टूट गया तो टूट गया

मदिरालय का आंगन देखो

कितने प्याले हिल जाते हैं

गिर मिट्टी में मिल जाते हैं

जो गिरते हैं कब उठते हैं

पर बोलो टूटे प्यालों पर

कब मदिरालय पछताता है

जो बीत गई सो बात गई


मृदु मिट्टी के बने हुए हैं

मधु घट फूटा ही करते हैं

लघु जीवन ले कर आए हैं

प्याले टूटा ही करते हैं

फ़िर भी मदिरालय के अन्दर

मधु के घट हैं,मधु प्याले हैं

जो मादकता के मारे हैं

वे मधु लूटा ही करते हैं

वह कच्चा पीने वाला है

जिसकी ममता घट प्यालों पर

जो सच्चे मधु से जला हुआ

कब रोता है चिल्लाता है

जो बीत गई सो बात गई

 

10. कर्मवीर

अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध

देख कर बाधा विविध, बहु विघ्न घबराते नहीं।
रह भरोसे भाग के दुख भोग पछताते नहीं
काम कितना ही कठिन हो किन्तु उकताते नही
भीड़ में चंचल बने जो वीर दिखलाते नहीं।।

हो गये एक आन में उनके बुरे दिन भी भले
सब जगह सब काल में वे ही मिले फूले फले।।
आज करना है जिसे करते उसे हैं आज ही
सोचते कहते हैं जो कुछ कर दिखाते हैं वही

मानते जो भी है सुनते हैं सदा सबकी कही
जो मदद करते हैं अपनी इस जगत में आप ही
भूल कर वे दूसरों का मुँह कभी तकते नहीं
कौन ऐसा काम है वे कर जिसे सकते नहीं।।

जो कभी अपने समय को यों बिताते है नहीं
काम करने की जगह बातें बनाते हैं नहीं
आज कल करते हुए जो दिन गँवाते है नहीं
यत्न करने से कभी जो जी चुराते हैं नहीं

बात है वह कौन जो होती नहीं उनके लिये
वे नमूना आप बन जाते हैं औरों के लिये।।
व्योम को छूते हुए दुर्गम पहाड़ों के शिखर
वे घने जंगल जहां रहता है तम आठों पहर

गर्जते जल राशि की उठती हुई ऊँची लहर
आग की भयदायिनी फैली दिशाओं में लपट
ये कंपा सकती कभी जिसके कलेजे को नहीं
भूलकर भी वह नहीं नाकाम रहता है कहीं।

 


11. मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूं,

गोपालदास नीरज


मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूं..
तुम मत मेरी मंजिल आसान करो..

हैं फ़ूल रोकते, काटें मुझे चलाते..
मरुस्थल, पहाड़ चलने की चाह बढाते..
सच कहता हूं जब मुश्किलें ना होती हैं..
मेरे पग तब चलने में भी शर्माते..
मेरे संग चलने लगे हवायें जिससे..
तुम पथ के कण-कण को तूफ़ान करो..

मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूं..
तुम मत मेरी मंजिल आसान करो..

अंगार अधर पे धर मैं मुस्काया हूं..
मैं मर्घट से ज़िन्दगी बुला के लाया हूं..
हूं आंख-मिचौनी खेल चला किस्मत से..
सौ बार मृत्यु के गले चूम आया हूं..
है नहीं स्वीकार दया अपनी भी..
तुम मत मुझपर कोई एहसान करो..

मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूं..
तुम मत मेरी मंजिल आसान करो..

शर्म के जल से राह सदा सिंचती है..
गति की मशाल आंधी में ही हंसती है..
शोलो से ही श्रिंगार पथिक का होता है..
मंजिल की मांग लहू से ही सजती है..
पग में गति आती है, छाले छिलने से..
तुम पग-पग पर जलती चट्टान धरो..

मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूं..
तुम मत मेरी मंजिल आसान करो..

फूलों से जग आसान नहीं होता है..
रुकने से पग गतिवान नहीं होता है..
अवरोध नहीं तो संभव नहीं प्रगति भी..
है नाश जहां निर्मम वहीं होता है..
मैं बसा सुकून नव-स्वर्ग धरापर जिससे..
तुम मेरी हर बस्ती वीरान करो..

मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूं..
तुम मत मेरी मंजिल आसान करो..

मैं पन्थी तूफ़ानों मे राह बनाता..
मेरा दुनिया से केवल इतना नाता..
वेह मुझे रोकती है अवरोध बिछाकर..
मैं ठोकर उसे लगाकर बढ्ता जाता..
मैं ठुकरा सकूं तुम्हें भी हंसकर जिससे..
तुम मेरा मन-मानस पाषाण करो..

मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूं..
तुम मत मेरी मंजिल आसान करो..


 

12. चलना हमारा काम है,

लेखक शिवमंगल सिंह सुमन


गति प्रबल पैरों में भरी
फिर क्यों रहूं दर दर खडा
जब आज मेरे सामने
है रास्ता इतना पडा
जब तक मंजिल पा सकूँ,
तब तक मुझे विराम है,
चलना हमारा काम है।

कुछ कह लिया, कुछ सुन लिया
कुछ बोझ अपना बँट गया
अच्छा हुआ, तुम मिल गई
कुछ रास्ता ही कट गया
क्या राह में परिचय कहूँ,
राही हमारा नाम है,
चलना हमारा काम है।

जीवन अपूर्ण लिए हुए
पाता कभी खोता कभी
आशा निराशा से घिरा,
हँसता कभी रोता कभी
गति-मति हो अवरूद्ध,
इसका ध्यान आठो याम है,
चलना हमारा काम है।

इस विशद विश्व-प्रहार में
किसको नहीं बहना पडा
सुख-दुख हमारी ही तरह,
किसको नहीं सहना पडा
फिर व्यर्थ क्यों कहता फिरूँ,
मुझ पर विधाता वाम है,
चलना हमारा काम है।

मैं पूर्णता की खोज में
दर-दर भटकता ही रहा
प्रत्येक पग पर कुछ कुछ
रोड़ा अटकता ही रहा
निराशा क्यों मुझे?
जीवन इसी का नाम है,
चलना हमारा काम है।

साथ में चलते रहे
कुछ बीच ही से फिर गए
गति जीवन की रूकी
जो गिर गए सो गिर गए
रहे हर दम,
उसी की सफलता अभिराम है,
चलना हमारा काम है।

फकत यह जानता
जो मिट गया वह जी गया
मूंदकर पलकें सहज
दो घूँट हँसकर पी गया
सुधा-मिक्ष्रित गरल,
वह साकिया का जाम है,
चलना हमारा काम है।


 

13. चल सको तो चलो

कवि निदा फ़ाज़ली



सफ़र में धूप तो होगी, जो चल सको तो चलो

सभी हैं भीड़ में, तुम भी निकल सको तो चलो

इधर-उधर कई मंजिल है, चल सको तो चलो

बने बनाये हैं साँचे, जो ढल सको तो चलो

किसी के वास्ते राहें कहाँ बदलती हैं

तुम अपने आप को खुद बदल सको तो चलो

यहाँ किसी को कोई रास्ता नहीं देता

मुझे गिराके अगर तुम संभल सको तो चलो

यही है जिंदगी कुछ ख्वाब चंद उम्मीदें

इन्हें खिलौनों से तुम भी बहल सको तो चलो

हर एक सफ़र को है मह्फूज़ रास्तों की तलाश

हिफाज़तों की रिवायत बदल सको, तो चलो

कहीं नहीं कोई सूरज, धुआँ-धुआँ है फिज़ा

ख़ुद अपने आप से बाहर निकल सको, तो चलो.



 14. रुके तू, थके तू 

कवि स्व. हरिवंश राय बच्चन |


रुके तू, थके तू

धरा हिला, गगन गुंजा

नदी बहा, पवन चला

विजय तेरी, विजय तेरी

ज्योति सी जल, जला

भुजा-भुजा, फड़क-फड़क

रक्त में धड़क-धड़क

धनुष उठा, प्रहार कर

तू सबसे पहला वार कर

अग्नि सी धधक-धधक

हिरन सी सजग-सजग

सिंह सी दहाड़ कर

शंख सी पुकार कर

रुके तू, थके तू

झुके तू, थमे तू

सदा चले, थके तू

रुके तू, झुके तू


 

15. तुम तो हारे नहीं तुम्हारा मन क्यों हारा है 

कवित्री स्व. महादेवी वर्मा |


तुम तो हारे नहीं तुम्हारा मन क्यों हारा है?

कहते हैं ये शूल चरण में बिंधकर हम आए

किंतु चुभे अब कैसे जब सब दंशन टूट गए

कहते हैं पाषाण रक्त के धब्बे हैं हम पर

छाले पर धोएं कैसे जब पीछे छूट गए

यात्री का अनुसरण करें

इसका सहारा है!

तुम्हारा मन क्यों हारा है?

इसने पहिन वसंती चोला कब मधुबन देखा?

लिपटा पग से मेघ बिजली बन पाई पायल

इसने नहीं निदाघ चाँदनी का जाना अंतर

ठहरी चितवन लक्ष्यबद्ध, गति थी केवल चंचल!

पहुँच गए हो जहाँ विजय ने

तुम्हें पुकारा है!

तुम्हारा मन क्यों हारा है


 


16. ये जो शहतीर है पलकों पे उठा लो यारो

- दुष्यंत कुमार


ये जो शहतीर है पलकों पे उठा लो यारो
अब कोई ऐसा तरीका भी निकालो यारो

दर्देदिल वक़्त पे पैग़ाम भी पहुँचाएगा
इस क़बूतर को ज़रा प्यार से पालो यारो

लोग हाथों में लिए बैठे हैं अपने पिंजरे
आज सैयाद को महफ़िल में बुला लो यारो

आज सीवन को उधेड़ो तो ज़रा देखेंगे
आज संदूक से वो ख़त तो निकालो यारो

रहनुमाओं की अदाओं पे फ़िदा है दुनिया
इस बहकती हुई दुनिया को सँभालो यारो

कैसे आकाश में सूराख़ हो नहीं सकता
एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो

लोग कहते थे कि ये बात नहीं कहने की
तुमने कह दी है तो कहने की सज़ा लो यारो



 

17. अग्निपथ हरिवंश राय बच्चन

वृक्ष हों भले खड़े,
हों घने हों बड़े,
एक पत्र छाँह भी,
माँग मत, माँग मत, माँग मत,
अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ।

तू  थकेगा कभी,
तू  रुकेगा कभी,
तू  मुड़ेगा कभी,
कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ,
अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ।

यह महान दृश्य है,
चल रहा मनुष्य है,
अश्रु स्वेद रक्त से,
लथपथ लथपथ लथपथ,

अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ।

 



18. मुठ्ठी में कुछ सपने लेकर

Poet : R. D. Telang

मुठ्ठी में कुछ सपने लेकर,

भरकर जेबों में आशाएं

दिल में है अरमान यही,

कुछ कर जाए,

कुछ कर जाए..


सूरज-सा तेज़ नहीं मुझमें,

दीपक-सा जलता देखोगे

अपनी हद रौशन करने से,

तुम मुझको कब तक रोकोगे


मैं उस माटी का वृक्ष नहीं

जिसको नदियों ने सींचा है,

बंजर माटी में पलकर मैंने,

मृत्यु से जीवन खींचा है..

मैं पत्थर पर लिखी इबारत हूँ.,

शीशे से कब तक तोड़ोगे,

मिटने वाला मैं नाम नहीं.

तुम मुझको कब तक रोकोगे..


इस जग में जितने ज़ुल्म नहीं,

उतने सहने की ताकत है,

तानों के भी शोर में रहकर,

सच कहने की आदत है..

मैं सागर से भी गहरा हूँ..

तुम कितने कंकड़ फेंकोगे

चुन-चुन कर आगे बढूँगा मैं

तुम मुझको कब तक रोकोगे


झुक-झुककर सीधा खड़ा हुआ,

अब फिर झुकने का शौक नहीं.

अपने ही हाथों रचा स्वयं,

तुमसे मिटने का खौफ़ नहीं,

तुम हालातों की भट्टी में

जब-जब भी मुझको झोंकोगे

तब तपकर सोना बनूंगा मै,

तुम मुझको कब तक रोकोगे.

तुम मुझको कब तक रोक़ोगे...




19. कमियां निकालने के लिए लोग हैं अज्ञात



तू अपनी खूबियां ढूंढ ....

कमियां निकालने के लिए लोग हैं |

अगर रखना ही है कदम....

तो आगे रख ,

पीछे खींचने के लिए लोग हैं |

सपने देखने ही है .....

तो ऊंचे देख ,

निचा दिखाने के लिए लोग हैं |

अपने अंदर जुनून की चिंगारी भड़का ,

जलने के लिए लोग हैं |

अगर बनानी है.....

तो यादें बना ,

बातें बनाने के लिए लोग हैं|

प्यार करना है....

तो खुद से कर ,

दुश्मनी करने के लिए लोग है |

रहना है....

तो बच्चा बनकर रह ,

समझदार बनाने के लिए लोग है |

भरोसा रखना है....

तो खुद पर रख ,

शक करने के लिए लोग हैं |

तू बस सवार ले खुद को...

आईना दिखाने के लिए लोग हैं |

खुद की अलग पहचान बना....

भीड़ में चलने के लिए लोग है |

तू कुछ करके दिखा दुनिया को......

बस कुछ करके दिखा, तालियां बजाने के लिए लोग हैं



20. रथ का टूटा हुआ पहियाअज्ञात


मैं

रथ का टूटा हुआ पहिया हूं

लेकिन मुझे फेंको मत!


क्या जाने कब

इस दुरूह चक्रव्यूह में

अक्षौहिणी सेनाओं को चुनौती देता हुआ

कोई दुस्साहसी अभिमन्यु आकर घिर जाय!


अपने पक्ष को असत्य जानते हुए भी

बड़े-बड़े महारथी

अकेली निहत्थी आवाज़ को

अपने ब्रह्मास्त्रों से कुचल देना चाहें


तब मैं

रथ का टूटा हुआ पहिया

उसके हाथों में

ब्रह्मास्त्रों से लोहा ले सकता हूं!

मैं रथ का टूटा पहिया हूं

लेकिन मुझे फेंको मत


इतिहासों की सामूहिक गति

सहसा झूठी पड़ जाने पर

क्या जाने

सच्चाई टूटे हुए पहियों का आश्रय ले !


 

21. कमियां निकालने के लिए लोग हैं |

गोपालदास नीरज

लोहे के पेड़ हरे होंगे,
तू गान प्रेम का गाता चल,
नम होगी यह मिट्टी ज़रूर,
आँसू के कण बरसाता चल।

सिसकियों और चीत्कारों से,
जितना भी हो आकाश भरा,
कंकालों हो ढेर,
खप्परों से चाहे हो पटी धरा

आशा के स्वर का भार,
पवन को लेकिन, लेना ही होगा,
जीवित सपनों के लिए मार्ग
मुर्दों को देना ही होगा।

रंगो के सातों घट उँड़ेल,
यह अँधियारी रँग जायेगी,
ऊषा को सत्य बनाने को
जावक नभ पर छितराता चल।

आदर्शों से आदर्श भिड़े,
प्रज्ञा प्रज्ञा पर टूट रही।
प्रतिमा प्रतिमा से लड़ती है,
धरती की किस्मत फूट रही।

आवर्तों का है विषम जाल,
निरुपाय बुद्धि चकराती है,
विज्ञान-यान पर चढी हुई
सभ्यता डूबने जाती है।

जब-जब मस्तिष्क जयी होता,
संसार ज्ञान से चलता है,
शीतलता की है राह हृदय,
तू यह संवाद सुनाता चल।

सूरज है जग का बुझा-बुझा,
चन्द्रमा मलिन-सा लगता है,
सब की कोशिश बेकार हुई,
आलोक इनका जगता है,

इन मलिन ग्रहों के प्राणों में
कोई नवीन आभा भर दे,
जादूगर! अपने दर्पण पर
घिसकर इनको ताजा कर दे।

दीपक के जलते प्राण,
दिवाली तभी सुहावन होती है,
रोशनी जगत् को देने को
अपनी अस्थियाँ जलाता चल।

क्या उन्हें देख विस्मित होना,
जो हैं अलमस्त बहारों में,
फूलों को जो हैं गूँथ रहे
सोने-चाँदी के तारों में।

मानवता का तू विप्र!
गन्ध-छाया का आदि पुजारी है,
वेदना-पुत्र! तू तो केवल
जलने भर का अधिकारी है।

ले बड़ी खुशी से उठा,
सरोवर में जो हँसता चाँद मिले,
दर्पण में रचकर फूल,
मगर उस का भी मोल चुकाता चल।

काया की कितनी धूम-धाम!
दो रोज चमक बुझ जाती है;
छाया पीती पीयुष,
मृत्यु के उपर ध्वजा उड़ाती है

लेने दे जग को उसे,
ताल पर जो कलहंस मचलता है,
तेरा मराल जल के दर्पण
में नीचे-नीचे चलता है।

कनकाभ धूल झर जाएगी,
वे रंग कभी उड़ जाएँगे,
सौरभ है केवल सार, उसे
तू सब के लिए जुगाता चल।

क्या अपनी उन से होड़,
अमरता की जिनको पहचान नहीं,
छाया से परिचय नहीं,
गन्ध के जग का जिन को ज्ञान नहीं?

जो चतुर चाँद का रस निचोड़
प्यालों में ढाला करते हैं,
भट्ठियाँ चढाकर फूलों से
जो इत्र निकाला करते हैं।

ये भी जाएँगे कभी, मगर,
आधी मनुष्यतावालों पर,
जैसे मुसकाता आया है,
वैसे अब भी मुसकाता चल।

सभ्यता-अंग पर क्षत कराल,
यह अर्थ-मानवों का बल है,
हम रोकर भरते उसे,
हमारी आँखों में गंगाजल है।

शूली पर चढ़ा मसीहा को
वे फूल नहीं समाते हैं
हम शव को जीवित करने को
छायापुर में ले जाते हैं।

भींगी चाँदनियों में जीता,
जो कठिन धूप में मरता है,
उजियाली से पीड़ित नर के
मन में गोधूलि बसाता चल।

यह देख नयी लीला उनकी,
फिर उनने बड़ा कमाल किया,
गाँधी के लोहू से सारे,
भारत-सागर को लाल किया।

जो उठे राम, जो उठे कृष्ण,
भारत की मिट्टी रोती है,
क्या हुआ कि प्यारे गाँधी की
यह लाश जिन्दा होती है?
तलवार मारती जिन्हें,
बाँसुरी उन्हें नया जीवन देती,
जीवनी-शक्ति के अभिमानी!
यह भी कमाल दिखलाता चल।

धरती के भाग हरे होंगे,
भारती अमृत बरसाएगी,
दिन की कराल दाहकता पर
चाँदनी सुशीतल छाएगी।

ज्वालामुखियों के कण्ठों में
कलकण्ठी का आसन होगा,
जलदों से लदा गगन होगा,
फूलों से भरा भुवन होगा।

बेजान, यन्त्र-विरचित गूँगी,
मूर्त्तियाँ एक दिन बोलेंगी,
मुँह खोल-खोल सब के भीतर
शिल्पी! तू जीभ बिठाता चल।

अंततः इतना कहूंगा की क्या खूब लिखा है इन कवियों ने जिसको पढ़ने से बार-बार सोचने से सकारात्मक ऊर्जा का विकास होता है एवं हम आगे बढ़ने की कोशिश करते हैं और मुश्किलों का डटकर सामना करने के लिए हमें आत्म बल मिलता है |

मुझे विश्वास है कि आपने सकारात्मक ऊर्जा का अवश्य विकास होगा | 

ढेर सारी शुभकामनाएं |


आपका शुभेच्छु |


संकलक