तस्मात्त्वमुत्तिष्ठ यशो लभस्व
जित्वा शत्रून्भुंक्ष्व राज्यं समृद्धम् ।
मयैवैते निहता: पूर्वमेव
निमित्तमात्रं भव सव्यसाचिन् ॥ ३३ ॥

तस्मात्, त्वम्, उत्तिष्ठ, यशः, लभस्व, जित्वा, शत्रून्, भुङ्क्ष्व, राज्यम्, समृद्धम्, मया, एव, एते, निहताः, पूर्वम्, एव, निमित्तमात्रम्, भव, सव्यसाचिन् ⁠।⁠।⁠३३⁠।⁠।

अतएव तू उठ! यश प्राप्त कर और शत्रुओंको जीतकर धन-धान्यसे सम्पन्न राज्यको भोग। ये सब शूरवीर पहलेहीसे मेरे ही द्वारा मारे हुए हैं। हे सव्यसाचिन् (श्रेष्ठ धनुर्धर)! तू तो केवल निमित्तमात्र (कारण) बन जा ⁠।⁠।⁠३३⁠।⁠।

Therefore get up. Prepare to fight and win glory. Conquer your enemies and enjoy a flourishing kingdom. They are already put to death by My arrangement, and you, O Savyasācī, can be but an instrument in the fight.

कर्म ही श्रेष्ठ है उससे मत भागो -


श्री कृष्ण कहते हैं कि युद्ध न करने पर भी यह सब निश्चित ही मरेंगे | तुम कर्म करो, जीतो और सुख भोगो |

समय तो बर्बाद होना ही है चाहे काम करके बर्बाद किया जाए या बिना काम किए | जीवन के महत्वपूर्ण पल तो निकल ही रहे हैं, चाहे हम कर्म करें या न करें |

जिंदगी मोमबत्ती की तरह है | चाहे प्रकाश करके उजाला फैलाएं या धूप में जलाएं | यह हम पर निर्भर करता है कि हम प्रकाश करते हैं या बर्बाद करते हैं | 

जिंदगी आइसक्रीम की तरह है टेस्ट करो तब भी पिघल रही है और वेस्ट करो तब भी पिघल रही है.. 
यह हम पर निर्भर करता है कि हम टेस्ट कर रहे हैं वेस्ट...

अर्जुन की भांति जीत हमारी ही है, बशर्ते हमको युद्ध करना है, अपने नाकामियों से, अपने कमजोरियों से, अपने नकारात्मक विचारो से | अवसर को हाथ से मत जाने दो, अपने समस्याओं से युद्ध करो और जीतो | परीक्षा देने पर पास होने की संभावना बढ़ती है, न देने पर जीत की संभावना शून्य ही है | जीत का संकल्प ही जीत का विकल्प है | यह संकल्प है पीछे न मुड़ के देखने की | कवन सो काज कठिन जग माहीं...

जो बायें हाथ से भी बाण चला सकता हो, उसे ‘सव्यसाची’ कहते हैं। अर्जुन की भांति हम भी सब्यसाची हैं, जो चाहे कर सकते हैं | बस निशाना मछली के आंख पर होना चाहिए | हम इस कर्मभूमि पर एक निमित्त मात्र है | यह विश्व कर्म प्रधान है तथा हमें कर्म करना ही पड़ेगा | पास होने के लिए परीक्षा देनी ही पड़ेगी | बस जरूरत है हमें अपने उत्साह से कर्मों में लग जाने की | ठान लो तो जीत और मान लो तो हार...


लेखक : ओम प्रकाश कसेरा