प्रिय पाठक,

महाशय धर्मपाल जी एमडीएच के 97 साल के जवान, स्वच्छंद और तजुर्बे वाले उद्यमी (एंटरप्रेन्योर) का निधन कल दिनांक 3 दिसंबर 2020 को हो गया है। ​​वह 97 साल के थे। कोरोना से ठीक होने के बाद हार्ट अटैक से उनका निधन हुआ। व्यापार और उद्योग में उल्लेखनीय योगदान देने के लिए पिछले साल उन्हें राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने पद्मभूषण से नवाजा था। इसके अतिरिक्त उन्हें उद्यमिता के लिए अनेकों पुरस्कार मिल चुके हैं वह हमारे समाज के लिए एवं युवा उद्यमियों के लिए एक आईना है |
मैं उन्हें 97 साल का वृद्ध व्यक्ति नहीं मानता बल्कि 97 साल के तजुर्बे वाला नौजवान व्यक्ति मानता हूं जो युवा उद्यमियों को कुछ सीखने के लिए प्रेरित करते रहेंगे | 

एमडीएच के 97 साल के जवान, स्वच्छंद और तजुर्बे वाले उद्यमी (एंटरप्रेन्योर) एवं संस्थापक महाशय धर्मपाल गुलाटी जो एमडीएच विज्ञापनों में एवं मसाले के पैकेट पर मुस्कुराते हुए लाल पगड़ी में दिखते हैं, जिन्हें मसालों के बादशाह, एमडीएच चचा, दादाजी, मसाला किंग, किंग ऑफ़ स्पाइसेस के नाम से जाना जाता है | यह किसी बूढ़े नहीं बल्कि 97 सालों के अनुभव वाले जवान व्यक्ति के दृढ़ता, कड़ी मेहनत की कहानी है। एक ऐसी उम्र में जहां अधिकांश लोग सेवानिवृत्ति की तलाश करते हैं, 97 वर्षीय गुलाटी रविवार को कारखानों, बाजारों और डीलरों के दैनिक चक्कर लगाते थे ताकि यह जांचा जा सके कि सब कुछ सही ढंग से चल रहा है या नहीं। उन्हें दुनिया का सबसे उम्रदराज ऐड स्टार माना जाता है। 97 साल की उम्र में भी वह किसी युवा उद्यमी से कम नहीं थे। उनका दूरदर्शी एवं लगन युवा उद्यमियों को प्रेरित करता रहेगा। वह नब्बे के दशक में, वह एमडीएच मसालों के ब्रांड एंबेसडर बने रहे है | धरमपाल गुलाटी अपने उत्पादों का ऐड खुद ही करते थे। 

एमडीएच के धर्मपाल गुलाटी ने हाल ही में एक वित्त वर्ष वेतन के रूप में 21 करोड़ से अधिक का घर खरीदा।  

94 साल की उम्र में 2017 में धर्मपाल जी भारत में सबसे अधिक वेतन 21 करोड़ का भुगतान पाने वाले एफएमसीजी (फास्ट मूविंग कंज्यूमर गुड्स) सीईओ थे। दो साल बाद, 16 मार्च, 2019 को उन 112 विशिष्ट लोगों में, जिन्हें पद्म पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था, महाशय धर्मपाल गुलाटी भी थे, जिन्हें उनके काम के लिए भारत के 14 वें राष्ट्रपति श्री राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद से पद्म भूषण से नवाजा था। 2016 में एबीसीआई के वार्षिक पुरस्कारों में उन्हें "इंडियन ऑफ द ईयर" नामित किया गया। 2017 में उन्हें जीवन भर की उपलब्धि के लिए "उत्कृष्टता पुरस्कार" मिला।

बात पुरानी है जब उनके पिता महाशाय चुन्नी लाल गुलाटी का पारिवारिक व्यवसाय मसाले पीसना और बेचना था। उन्होंने ने 1919 में सियालकोट, पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में स्थित मसाला कंपनी की स्थापना की | परिवार को लोकप्रिय रूप से "डिगि मिर्च वेले" कहा जाता था जिसका अर्थ 'लाल मिर्च पाउडर बेचने वाले' है | 

उनके पुत्र महाशय धर्मपाल गुलाटी का जन्म 27 मार्च, 1923 को सियालकोट (पाकिस्तान) में हुआ था। गुलाटी जब पांचवी कक्षा में थे तब 1933 में स्कूल छोड़ दिया और
आगे की पढ़ाई के लिए वह स्कूल नहीं गए। उन्होंने ढेरों क्षेत्रों में अपनी किस्मत आज़माई | उन्होंने साबुन का व्यवसाय शुरू किया, बढ़ईगीरी का काम किया, कपड़े, हार्डवेयर और चावल के व्यापार, पेंटिंग, कढ़ाई आदि का कारोबार किया लेकिन इनमें से किसी भी व्यवसाय में वे लंबे समय तक नहीं टिके। ढेरों चुनौतियां एवं बाधाएं आई | बाद में उन्हें लगा कि उन्हें अपना पैतृक व्यवसाय बढ़ाना चाहिए और उन्होंने फिर से अपना पैतृक व्यवसाय करने का फैसला किया, जो कि मसाले का व्यवसाय था |

वर्ष 1947 ने विभाजन ने सब कुछ बदल दिया वह पुनः शून्य पर पहुंच गए और फिर शुरू हुआ शून्य से शिखर का सफर | विभाजन के दौरान वे अपने स्वामित्व वाली हर चीज पीछे छोड़ चुके थे | अब बचा था तो सिर्फ हौसला। 
व्यवसाय पूरी तरह से नष्ट हो गया और परिवार भारत आ गया और वे अमृतसर में एक कैंप में शरणार्थी के रूप में रहने लगे। फिर गुलाटी अपने बहनोई के साथ दिल्ली चले गए | दिल्ली में वह शुरू में करोल बाग में अपनी भतीजी के घर पर रहे जिसमें न तो पानी की आपूर्ति थी, न बिजली थी और न ही शौचालय की कोई सुविधा थी।

दिल्ली जाने पर युवा गुलाटी के पिता ने उन्हें 1500 रुपये दिए | कमाई का कोई स्रोत ना होने पर उन रुपयों में से उन्होंने 650 रुपये का उपयोग एक तांगा ( घोड़े वाली गाड़ी ) खरीदने के लिए किया और कनॉट प्लेस से करोल बाग जाने वाले यात्रियों के लिए फेरी शुरू की ऐसे भी दिन थे जब धर्मपाल के पास कोई यात्री नहीं था। उन्होंने सवारी के लिए दो आना (एक रुपये के 1/8 वें के बराबर) चार्ज किया | परिवार को बनाए रखने के लिए उनका आय बहुत कम साबित हुआ तब उन्होंने तांगा हटाने का फैसला किया और उसे बेच दिया | 

उन्होंने एक झोंपड़ी में दुकान खोली और अपने पिता की तरह मसाले बेचने लगे। थोड़ी कमाई होने एवं पैसे बचाने के बाद उन्होंने रिस्क लिया और अपनी बचाई पूंजी लगाकर अजमल खान रोड में एक दुकान किराए पर ली |

शुरुआत के साथ सफलता हासिल करने के बाद उन्होंने करोल बाग में एक नई दुकान खोलकर कारोबार का विस्तार किया। 

फिर उन्होंने रुकने का नाम नहीं लिया और व्यवसाय को बढ़ाने के क्रम में 1953 में उन्होंने चांदनी चौक में एक और दुकान किराए पर ली | 

वह रुके नहीं | पुनः 1954 में उन्होंने करोल बाग में रूपक स्टोर्स की स्थापना की जो उस समय दिल्ली में भारत का पहला आधुनिक मसाला स्टोर था। जो बाद में उन्होंने अपने छोटे भाई को सौंप दिया। 

और 1959 में उन्होंने जमीन का एक प्लॉट खरीदा और कीर्ति नगर में खुद की मसाला फैक्ट्री स्थापित करने का फैसला किया और वहां से उन्होंने पूरे भारत के अग्रणी मसालों के निर्माता में से एक के रूप में 15 कारखानों तक विस्तारित किया।

इसका नाम उन्होंने महाशिया दी हट्टी रखा जिसका पंजाबी में अर्थ है “एक शानदार व्यक्ति की दुकान” - एमडीएच (दीगी मिर्च वाले)| उन्होंने इसमें से एक ब्रांड बनाया और इसे महाशियां दी हट्टी कहा। महाशय धरमपाल महाशियां दी हट्टी (एमडीएच) के प्रसिद्ध ब्रांड एंबेसडर हैं | 

छोटी दुकान से मसालों को पीसने और बेचने के व्यवसाय के कुछ शुरुआती वर्षों के बाद परिवार ने पर्याप्त पैसा कमाना शुरू कर दिया। सियालकोट मसाला निर्माता के बारे में दिल्ली में उनकी ख्याति फैल गई और इस तरह दिल्ली में एमडीएच साम्राज्य की स्थापना शुरू हुई।  

इस दुकान से मसाले का कारोबार धीरे-धीरे इतना फैलता गया कि आज उनकी भारत और दुबई में मसाले की 18 फैक्ट्रियां हैं। इन फैक्ट्रियों में तैयार एमडीएच मसाले दुनियाभर में पहुंचते हैं। MDH में आज 62 उत्पादों की रेंज है जो 150 से अधिक विभिन्न पैकेजों में उपलब्ध है। 

वर्तमान बाजार परिदृश्य में, MDH 12% की बाजार हिस्सेदारी के साथ मसाले बाजार में दूसरे स्थान पर रहा और एवरेस्ट मसाले लगभग 13% बाजार हिस्सेदारी के साथ शीर्ष पर हैं। कंपनी उत्तरी भारत के 80 प्रतिशत बाजार पर कब्जे का दावा करती है। व्यापार भारत में ही नहीं पनपा बल्कि वह एक वितरक और निर्यातक भी बन गए और उनका उत्पाद 100 से अधिक देशों में बेचा जाता है जिसमें यूके, यूरोप, यूएई, कनाडा आदि शामिल हैं।

एक छोटी सी दुकान के रूप में 1919 में शुरू हुआ व्यवसाय जिसे विभाजन से पहले उनके पिता ने स्थापित किया था व्यापार के कुछ मूल सिद्धांतों का पालन करके शीर्ष पर पहुंच गया |  

व्यापार में अटूट समर्पण, दूरदर्शिता, लगन, मेहनत और पूरी ईमानदारी से महाशय का व्यवसाय ऊंचाइयों को छूने लगा जो आज के नवयुवकों को कुछ सीखने के लिए प्रेरित करता है | 

इस सफलता का रास्ता इतना आसान नहीं था, एमडीएच एक जीवंत उदाहरण है कि कड़ी मेहनत, समर्पण और दृढ़ता लंबे समय में रिजल्ट देती है। 

गुलाटी अपने व्यावसायिक लक्ष्यों के बारे में बहुत स्पष्ट थे और भारत में सबसे अच्छी गुणवत्ता के मसाले बेचना चाहते थे। उनके व्यापक दृष्टि और उपभोक्ता उन्मुख योजनाओं ने एमडीएच को त्वरित गति से बढ़ने में मदद की। 

उन्होंने भले ही किताबी शिक्षा अधिक ना ली हो, लेकिन कारोबार में बड़े-बड़े दिग्गज उनका लोहा मानते थे। द इकोनॉमिक टाइम्स से बात करते हुए उन्होंने कहा, "काम करने की मेरी प्रेरणा सस्ती कीमतों पर बेचे जाने वाले उत्पाद की गुणवत्ता में ईमानदारी से है। और मेरे वेतन का लगभग 90% मेरी व्यक्तिगत क्षमता में दान में चला जाता है।" 

गुलाटी व्यापार के सभी बड़े फैसले लेते हैं और कंपनी में 80% हिस्सेदारी उनके पास है।

2018 में इनके इन हैंड सैलेरी 25 करोड़ थी। भारत में एफएमसीजी में 25 करोड़ से अधिक के वेतन के साथ सबसे अधिक वेतन पाने वाले सीईओ है। गुलाटी अपनी सैलरी का करीब 90 फीसदी हिस्सा दान कर देते थे। 

हम लोगों में से ज्यादातर नौजवान कुछ करने से पहले ही हार मान लेते हैं कि हमसे न होगा, हमारे पास साधन नहीं है | मेरा उन छोटे उद्यमियों को सलाह है कि आप अपनी सामर्थ्य का आकलन करें एवं उसमें सबसे ऊपर वाले बिंदु का स्वॉट (SWOT - Strength, Weakness, Oppertunity & Threat) एनालिसिस करें | ऊंचे सपने देखें, अपने सामर्थ्य को पहचाने, हिम्मत करें और पीछे मुड़कर न देखें | 

सफलता आपका बेसब्री से इंतजार कर रही है परंतु आपको सफलता के पास स्वयं पहुंचना पड़ेगा | किसी की बात में ना आए, आपको रोकने वाले बहुत हैं | कोई प्रेम बस तो कोई द्वेष से आपको रोकना चाहता है | अब वह समय ही नहीं है जब राजा का बेटा राजा नहीं बनेगा... अब राजा वही बनेगा जो हकदार होगा!

बस जरूरत है तो आलस्य ना करने की क्योंकि - 

आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः।
नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति।।

अर्थ – व्यक्ति का सबसे बड़ा दुश्मन आलस्य होता है, व्यक्ति का परिश्रम ही उसका सच्चा मित्र होता है। क्योंकि जब भी मनुष्य परिश्रम करता है तो वह दुखी नहीं होता है और हमेशा खुश ही रहता है।

उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः।
न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगा:।।

अर्थ – व्यक्ति के मेहनत करने से ही उसके काम पूरे होते हैं, सिर्फ इच्छा करने से उसके काम पूरे नहीं होते। जैसे सोये हुए शेर के मुंह में हिरण स्वयं नहीं आता, उसके लिए शेर को परिश्रम करना पड़ता है।

अश्वस्य भूषणं वेगो मत्तं स्याद् गजभूषणं।
चातुर्यम् भूषणं नार्या उद्योगो नरभूषणं।।

अर्थ – घोड़े की शोभा उसके वेग से होती है और हाथी की शोभा उसकी मदमस्त चाल से होती है। नारियों की शोभा उनकी विभिन्न कार्यों में दक्षता के कारण और पुरुषों की उनकी उद्योगशीलता के कारण होती है।

यथा ह्येकेन चक्रेण न रथस्य गतिर्भवेत्।
एवं परुषकारेण विना दैवं न सिद्ध्यति।।

अर्थ – जैसे एक पहिये से रथ नहीं चल सकता। ठीक उसी प्रकार बिना पुरुषार्थ के भाग्य सिद्ध नहीं हो सकता है।

अलसस्य कुतो विद्या , अविद्यस्य कुतो धनम् |
अधनस्य कुतो मित्रम् , अमित्रस्य कुतः सुखम् ||

अर्थ – आलसी को विद्या नहीं मिलती, जिनको विद्या नहीं है उनको धन नहीं मिलता | जिनके पास धन नहीं है उनको मित्र नहीं मिलता और जिनके पास मित्र नहीं है उनको सुख नहीं मिलता | 

जब आप कुछ करना चाहते हो तो प्रकृति भी आपका साथ देती है, आप आगे बढ़ते जाते हैं और कारवां बनता जाता है | लोग आप को नसीहत देते जाते हैं कुछ अच्छी नसीहत मिलती है तभी है आप उस पर अमल करें और बाकियों को अनसुना करें | कर्म करते रहें, सफलता आपका बेसब्री से इंतजार कर रही है | शुरू तो कीजिए | 

मंजिल मिल ही जायेगी एक दिन,
भटकते-भटकते ही सही ॥
गुमराह तो वो है,
जो घर से निकले ही नहीं ॥

खुशियां मिल जायेगी एक दिन,
रोते रोते हि सही ॥
कमजोर दिल के है वो.
जो हसने को सोचते ही नहीं ॥

पुरे होंगे हर वो ख्वाब.
जो देखते है अंधेरी रातों मे ॥
ना समझ हैं वो.
जो डर से पुरी रात सोते ही नही ॥

मिलेगा प्यार किसि ना किसि का,
एक दिन उनके लिये भी ॥
वो लोग ही बुझदिल हैं.
जो किसि से प्यार करते ही नहीं ॥

मंजिल मिल ही जायेगी एक दिन,
भटकते-भटकते ही सही ॥
गुमराह तो वो है,
जो घर से निकले ही नहीं ॥

सिर्फ भाग्य के सहारे ना बैठे क्या पता भाग्य आप के सहारे बैठा हो क्योंकि - 

यथा ह्येकेन चक्रेण न रथस्य गतिर्भवेत् ।
एवं पुरुषकारेण विना दैवं न सिध्यति ।।

अर्थात - जैसे एक पहिए से हाथ नहीं चल सकता | इसी तरह, कड़ी मेहनत के बिना भाग्य नहीं फल सकता।

तो बस लग जाइए | आप कुछ पाने के लिए बने हैं परंतु आप भूल गए हैं कि आपको क्या पाना है | अपनी शक्ति को पहचानिए, अपनी क्षमताओं पर भरोसा करिए, कुछ ऐसे मोमेंट को याद करिए जो कि लगभग असंभव था लेकिन आप ने कर दिखाया और लग जाइए | जो उड़ने का शौक रखते हैं उन्हें गिरने का खौफ नहीं होता, क्योंकि उन्हें अपने पंखों पर विश्वास होता है |

आप में हनुमान छिपे हैं जिनको जामवंत जी ने याद दिलाया था -

कवन सो काज कठिन जग माहीं। जो नहिं होइ तात तुम्ह पाहीं॥
राम काज लगि तव अवतारा। सुनतहिं भयउ पर्बताकारा॥

तो आप अपनी क्षमता को परखिए आप अवश्य कर लेंगे |

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इसी के साथ जय हिंद |