प्रिय पाठक,
वर्तमान में सभी जगह डर का माहौल है इसलिए मैंने यह लेख लिखना उचित समझा ताकि कुछ हद तक मैं अपने सामाजिक उत्तरदायित्व को पूरा कर सकूं एवं पैरलल ट्रीटमेंट, प्लेसिबो इफेक्ट (कूटभेषज प्रभाव) अर्थात बिलीफ सिस्टम के महत्व को आपके समक्ष रख सकूं | मैंने इस लेख को वैज्ञानिक आधार पर प्रस्तुत करने की कोशिश की है | यह लेख गहन अध्ययन एवं रिसर्च का प्रमाण है | मुझे विश्वास है इस लेख से प्लेसिबो इफेक्ट की आपकी जिज्ञासा शांत होगी, नकारात्मकता से सकारात्मकता की ओर अग्रसर होंगे एवं हम समाज के लिए कुछ कर सकेंगे |
आज सब जगह भय व्याप्त है | कुछ लोग तो बेकार में डरे हुए हैं क्योंकि बहुत लोग उनको अलग तरह तरह से व्याकुल कर रहे हैं | यह वह लोग हैं जो सुनी सुनाई बातों पर विश्वास करते हैं | जब हम ज्यादा नेगेटिव बातें सुनने लगते हैं तो बीमार न होने पर भी बीमार महसूस करने लगते हैं और जब पॉजिटिव लोगों के साथ रहते हैं तो गंभीर बीमार होने पर भी जल्द ठीक हो जाते हैं क्योंकि प्लेसिबो इफेक्ट अर्थात बिलीफ सिस्टम शरीर से ऐसे रसायन एवं हार्मोन निकालता है जो हमें जल्द ठीक कर देता है | यह हमें ऐसी ऊर्जा देता है कि हम गंभीर से गंभीर बीमारियों से लड़कर उनसे निजात पाते हैं | मेडिकल साइंस में इसे पैरलल ट्रीटमेंट, प्लेसिबो इफेक्टके नाम से भी जाना जाता है |
ज्यादा सोचेंगे तो ज्यादा निगेटिव विचार आएंगे आप और प्लेसिबो इफेक्ट के शिकार होंगे | प्लेसिबो इफेक्ट मतलब आपका बिलीफ सिस्टम आपको बीमार भी करता है और आपको ठीक भी करता है आप जो सोचते हो वह वैसा आपको कर देता है |
आइए वैज्ञानिक आधार पर यह जानते हैं की नेगेटिविटी शरीर में कौन से हार्मोन पैदा करती है और शरीर को कैसे नुकसान पहुंचाती है |
नकारात्मक विचार पैदा होने पर हाइपोथैलेमस (जो हमारे दिमाग का महत्वपूर्ण हिस्सा है) से स्ट्रेस हार्मोंस और एड्रेनालाईन निकलते हैं। यह शरीर की विभिन्न कोशिकाओं तक पहुंच जाते हैं। इससे लीवर में आपात स्थिति के लिए जमा किया गया ग्लूकोज का प्रयोग बढ़ जाता है ग्लूकोज बार-बार निकलता है एवं यह खत्म होने लगता है।नकारात्मक विचार ब्रेन सेल्स को मारने का काम करते हैं। आदमी थका हुआ, उदास, हताश, गंभीर बीमार हो जाता हैं।
यूएस नेशनल साइंस फाउंडेशन के रिसर्च के अनुसार हमारे दिमाग में एक दिन में लगभग 5० हजार विचार आते हैं। आश्चर्य की बात यह है कि इनमें से 7० प्रतिशत से 8० प्रतिशत विचार नकारात्मक होते हैं इस प्रकार एक दिन में करीब 4० हजार और एक साल में करीब 1 करोड़ 46 लाख नकारात्मक विचार आते है।
साइकोलॉजिस्ट्स पॉल रोज़िन और एडवर्ड रोइज़मैन ने इसे ‘नेगेटिव बायस’ नाम दिया यानि दिमाग का नेगेटिव ख्यालों की तरफ झुकाव। जिसके कारण किसी भी परिस्थिति में हम अच्छी पॉसिबिलिटी की बजाय बुरा ही सोचते हैं |
नकारात्मक विचार से इम्यूनिटी कम होती है और आशावादी अर्थात सकारात्मक दृष्टिकोण से शरीर की ताकत बढ़ती है |
सकारात्मक सोचने पर हाइपोथैलेमस से एंडोर्फिन नामक द्रव्य निकलता है। डोपामाइन, जिसे ‘मोटीवेशन हॉर्मोन’ भी कहा जाता है, यह एक न्यूरोहार्मोन है जो आपको किसी भी कार्य को सफ़लतापूर्वक समाप्त करने के लिए ज़रूरी प्रेरणा और मानसिक एकाग्रता देता है | पर्याप्त मात्रा में नींद, संगीत सुनने से डोपामाइन के रिसाव में बढ़ावा होता है और स्ट्रेस दूर होता है | यह काम करने की क्षमता, ध्यान, एकाग्रता और प्रेरणा बढ़ाता है एवं खुशी का संचार करता है। लगातार कई घंटे तक काम करने के बाद भी हम नहीं थकते।
सकारात्मक एवं नकारात्मक बात का प्रभाव वैसा ही होता है जैसे चश्मे के रंग का प्रभाव | नकारात्मक रंग का चश्मा पहन रखे हैं तो आपको सब जगह नकारात्मकता नजर आएगी और सकारात्मक सोचने पर सकारात्मकता नजर आएगी |
अमेरिकी लेखक और मोटिवेशनल स्पीकर जिम रॉन ने कहा है कि आप वास्तव में जो चाहते हैं, आपका मस्तिष्क स्वत: ही आपको उस दिशा में खींच ले जाता है।
यह सत्य घटना मैंने स्वामी विवेकानंद जी के जीवनी से लिया है | एक बार स्वामी विवेकानंद जी एक पुल से कही जा रहे थे | बहुत सारे बंदर उनके पीछे पड़ जाते है और स्वामी जी को परेशान करते है | स्वामी जी डर के अपने उन बंदरों से दूर भागने लगते हैं तभी एक आदमी आता है और स्वामी जी से बोलता है की आप इन बंदरों से मत डरों , आप जितना डरोगे ये आपको उतना ही डरायेंगे | इनका सामना करिए ये भाग जाएंगे। स्वामी जी उनकी आंखों से आंख मिलाकर चिल्लाते है और वो बंदर भाग जाते हैं। हमारे साथ भी ऐसा होता है |
ये नेगेटिव थॉट्स भी इन बंदरों की तरह ही है आप जितना इन बंदरों से डरोगे ये आपको डरायेंगे और आपके पीछे - पीछे आते रहेंगे | जरूरत है सकारात्मक सोच से इनका सामना करने की |
सकारात्मक सोच की शक्ति से घने अन्धकार को भी आशा की किरणों से रौशनी में बदला जा सकता है | यह हम पर निर्भर करता है कि हम अपने दिमाग रुपी जमीन में कौनसा बीज बोते है | सकारात्मक सोच से हम नकारात्मक कांटेदार पौधे को खुशनुमा महकते फूलों के पौधे में बदल सकते है |
नकारात्मकता को तो केवल सकारात्मक विचार ही समाप्त कर सकती है| यह ऐसे ही काम करती है जैसे अंधेरे में दीपक |
अभी की नकारात्मक माहौल में हमें लोगों को विश्वास दिलाना होगा कि सब अच्छा हो रहा है और अच्छा हो जाएगा | हमें लोगों को उन्हें नकारात्मकता से दूर ले जाना है और हम इसे प्लेसिबो इफेक्ट यानी बिलीफ सिस्टम से कर सकते हैं |
आइए देखते हैं कि क्या है यहां प्लेसिबो इफेक्ट -
आजकल साइकोमेट्रिक डॉक्टर प्लेसिबो इफेक्ट का प्रयोग मरीज को ठीक करने में करते हैं | मरीज की मानसिक स्थिति को पढ़कर पानी का इंजेक्शन दिया जाता है और दर्द, डिप्रेशन इत्यादि ठीक हो जाता है क्योंकि मरीज को पता नहीं होता कि पानी का इंजेक्शन दिया गया है और मरीज का दिमाग सिर्फ सोच के आधार पर हारमोंस निकालना शुरू कर देता है और वह धीरे-धीरे ठीक होने लगता है | मरीज का आत्मविश्वास (Belief) जाग जाता है | शब्दों में चमत्कार होता है इस ट्रीटमेंट को पैरलल ट्रीटमेंट कहते हैं आप इसे गूगल कर सकते हैं | पैरलल ट्रीटमेंट शब्दों से होता है, आखिर शरीर दिमाग की ही तो सुनता है | प्लेसबो शब्द का उपयोग 18 वीं शताब्दी के अंत औषधीय संदर्भ में किया गया था |
अमेरिका में एक कैदी को फांसी की सजा सुनाई गई तो कुछ वैज्ञानिकों ने सोचा कि क्यों न इस कैदी पर कुछ प्रयोग किया जाए। कैदी को बताया गया कि उसे जहरीला कोबरा डसाकर मारा जाएगा |
उसके सामने बड़ा सा जहरीला सांप लाया गया तथा उसकी आंखें बंद करके दो सेफ्टी पिन्स चुभाई गई। कैदी की कुछ सेकेन्ड में ही मौत हो गई | पोस्टमार्टम में यह पाया गया कि कैदी के शरीर में सांप के जहर के समान ही जहर है। वो जहर उसके खुद शरीर ने खुद ही उत्पन्न किया | हमारे हर विचार से पॉजिटीव एवं निगेटीव एनर्जी उत्पन्न होती है और वो हमारे शरीर में एड्रेनालाईन / एंडोर्फिन / डोपामाइन इत्यादि हॉर्मोन्स उत्पन्न करती है। 75% बीमारियों का मूल कारण नकारात्मक सोंच से उत्पन्न नकारात्मक ऊर्जा ही है ।
हम जानते हैं कि हिरण, बाघ से डेढ़ गुना ज्यादा रफ्तार से दौड़ते हैं | हिरणों की दौड़ने की गति 90 किमी और बाघ की गति 60 किमी प्रति घंटा होती है फिर भी बाघ हिरण का शिकार कर लेता है क्योंकि हिरणों के मन में एक डर होता है कि हम बाघ से कमज़ोर हैं उन्हें अपने पर विश्वास नहीं होता और वही डर उन्हें बार-बार पीछे देखने पर मजबूर करता है । उनकी चाल एवं मनोबल कम होता जाता है और बाघ आसानी से उनका शिकार कर लेता है |
विवेक बिंद्रा जी ने बिलीफ सिस्टम को कितने सरल तरीके से बताया है - बिलीफ सिस्टम इतना स्ट्रांग होता है कि -
1. It can break you or it can make you
2. You have hopeless end or you have endless hope
3. You can become strongly mental or you can become mentally strong
मैं सरल तरीके से इसे व्यक्त करूंगा -
It's your belief system which is so powerful that :
1. It can make you mad it can make you glad.
2. It can fill colour in your life or it can make your life dark.
3. You can end your life with sorrow or you can say sorry to sorrow. Your sorrow must be in grief that he met wrong person. It will flwe miles of miles away from you.
4. It can soften the hardness of life or it can harden it.
5. It can destroy your hardness or it can destroy yourself.
It all depends on Belief / Hope / Trust.
शेर के बच्चे को सर्कस में बचपन से ही एक इलेक्ट्रॉनिक छड़ी से कंट्रोल करते हैं और उसको इस बात का धीरे-धीरे विश्वास दिला देते हैं कि यह छड़ी बहुत ताकतवर है और आजीवन शेर उस छड़ी से डरता रहता है | यह उसका बिलीफ सिस्टम है जो वह मान लेता है की वह छड़ी से कमजोर है | एक हाथी के बच्चे को बचपन में एक छोटी सी रस्सी से बांधा जाता है और धीरे-धीरे उसे विश्वास हो जाता है कि वह उस रस्सी को नहीं तोड़ सकता और आजीवन वह एक पतली सी रस्सी का गुलाम बन कर रह जाता है | सच ही कहा गया है कि मन के हारे हार है मन के जीते जीत |
आप प्रकृति की ताकत को देख ले | छिपकली के पूछ कटने पर खुद से उसका पूछ वापस आ जाता है | उसके दिमाग में हारमोंस बनने लगते हैं और धीरे-धीरे नहीं पूछ वापस आ जाती है | भगवान ने ऐसा बना के रखा है कि हम अपनी जरूरतों को अपने दिमाग से और अपने हारमोंस से पूरा कर सकते हैं | बस हमें अपने ऊपर विश्वास होना चाहिए |
स्टीफन हॉकिंग, एक ऐसा वैज्ञानिक जिसका सिर्फ हृदय और दिमाग काम करता था, अपने बिलीफ सिस्टम के कारण मौत को भी हरा दिया |
हॉकिंग को 21 साल की उम्र में Amyotrophic Lateral Sclerosis (ALS) नामक गंभीर बीमारी हो गई थी। इस बीमारी की वजह से उनके शरीर ने धीरे-धीरे काम करना बंद कर दिया था। उनके शरीर के सभी अंग काम करना बंद कर दिया वह बोल भी नहीं पाते थे और हमेशा व्हीलचेयर पर रहते थे। कंप्यूटर उनके मुख की मांसपेशियों के इशारों को समझ कर कंप्यूटर पर टाइप करती थी | उनका हाथ-पैर और शरीर के सभी अंगों ने काम करना बंद कर दिया जिंदा था तो सिर्फ मस्तिष्क और हृदय |
21 वर्ष की उम्र में उन्हें डॉक्टर ने बोला की वह 2 साल ही जिंदा रह पाएंगे | अपने बिलीफ सिस्टम के कारण अपने को हारने नहीं दिया मौत को भी रास्ता छोड़ना पड़ा वह 55 साल और जिंदा रहे उनकी मृत्यु 76 वर्ष की उम्र में हुई |
उन्होंने डॉक्टर के दावे को गलत साबित कर अपनी रिसर्च जारी रखी। उनकी किताब 'अ ब्रीफ हिस्ट्ररी ऑफ टाइम' बिग बैंग थिअरी' और ब्लैक होल विषय पर पूरी दुनिया में तहलका मचाया और ब्रह्मांड के रहस्यों को समझने में दुनिया की मदद की |
अरुणिमा सिन्हा, गिरीश शर्मा, सुधा चंद्रन इत्यादि सैकड़ों उदाहरण है जिन्होंने अपने इच्छाशक्ति से जीत हासिल की |
अनीता देसाई के किताब डाइंग टू बी मी में आप देख सकते हैं कि कैसे कैंसर के कारण अंतिम सांस के बाद स्वयं के बिलीफ सिस्टम को जगाने के कारण वह फिर से जिंदा हो गई |
विश्वास में वह है जो असंभव को भी संभव कर सकता है आपके अवचेतन मन की शक्ति, द पावर ऑफ पॉजिटिव थिंकिंग, डाइंग टू बी मी, द लॉ ऑफ अट्रैक्शन इत्यादि ढेरों किताबें एवं अनेकों शोध आप पढ़ सकते हैं |
विश्व की पुरानी एंडेमिक में कोरोना से भी भयानक रोग आए और करोड़ों की संख्या में मृत्यु हुई | हमारे वैज्ञानिकों ने वैक्सीन का अविष्कार करके पोलियो, डिप्थीरिया, काली खांसी, रेबीज, प्लेग, टीवी इत्यादि लगभग खत्म ही कर दिया |
हमें नकारात्मक विचार लाना ही नहीं है क्योंकि अब तो कोरोनावायरस की वैक्सीन तो बन ही गई है | बस कुछ दिन और सावधानी से रहें और लोगों को डरने एवं डराने की जरूरत नहीं है, बस सतर्कता और सावधानी की जरूरत है |
यदि आप सावधानियां रख रहे हैं तो आपको कुछ नहीं होना है | कुछ दिन शादी-विवाह, बर्थडे, ग्रैंड मस्ती, पिकनिक, दरबार बंद कर दीजिए और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करिए |
ध्यान रखिए सावधानी हटी दुर्घटना घटी |
रामायण में प्रसंग है -
रिपु रुज पावक पाप प्रभु अहि गनिअ न छोट करि।
---अस कहि बिबिध बिलाप करि लागी रोदन करन।।
अर्थात- शत्रु, रोग, अग्नि, पाप, स्वामी और सर्प को छोटा नहीं समझना चाहिए। ऐसा कहकर शूर्पणखा अनेक प्रकार से विलाप करके रोने लगी।
विदुर जी कहते हैं -
महते योऽपकाराय नरस्य प्रभवेत्ररः। तेन वैरं समासज्य दूरस्थोऽमीति नाश्चसेत् ॥
अर्थात- शत्रु चाहे राज्य से बहुत दूर बैठा हो तो भी राजा को उससे सदा सावधान रहना चाहिए। थोड़ी सी भी चूक और उदासीनता राजा को बड़ा नुकसान पहुँचा सकती है।
हमें लोगों के बीच में आशा जगाना है जब 99% लोगों ठीक हो रहे हैं तो हम 1% के पीछे क्यों भाग रहे हैं |
1% में वही लोग हैं जो ज्यादा घबरा गए हैं | जब आप ज्यादा सोचते हैं तो आपके शरीर की क्रियाएं बढ़ जाती हैं, दिमाग का काम बढ़ जाता है, डिप्रेशन में हारमोंस बढ़ने लगते हैं और आपके शरीर को ज्यादा ऑक्सीजन की जरूरत होती है | अभी तो समय है जब आपको ऑक्सीजन का कंजंक्शन कम रखना है और हम डर कर ज्यादा ऑक्सीजन कंज्यूम करने लगते हैं |
हमें लोगों के बिलीफ सिस्टम को स्ट्रांग करना है कि उन्हें कुछ नहीं हुआ है और वह जल्द ही ठीक हो जाएंगे उनका इलाज बहुत अच्छा चल रहा है
डॉक्टर यह बात मानते हैं कि यदि आप सोशल डिस्टेंसिंग मास्क सैनिटाइजेशन इत्यादि निर्धारित तरीके से करते हैं तो आप 99% कोरोना से बचे हुए हैं | तो डर किस बात का आप तो पूरे प्रयास कर ही रहे हैं | आपको कुछ नहीं होने वाला है बस मन में विश्वास रखिए और नकारात्मकता से दूर रहिए |
पूरा प्रयास मतलब पूरा प्रयास दिखावा नहीं | और यह आप बार-बार मास्क क्यों छूते हैं यह पूरा प्रयास नहीं है मास्क को छूना नहीं है और नाक और मुंह अच्छी तरह से ढके रहना है | कुछ दिन निमंत्रण में मत जाइए |
माना कि आप सभी नियम को जानते हैं परंतु नियमों को जानना काफी नहीं है, हमें उसे लागू करना चाहिए।
इच्छा रखना काफी नहीं है, हमें करना चाहिए। इसके बाद आपको कुछ नहीं होने वाला है |
याद रखिये कोई भी व्यक्ति तब तक नहीं हारता जब तक वो हिम्मत नहीं हारता - ब्रूस ली
जीवन की लड़ाई में हमेशा शक्तिशाली या तेज व्यक्ति नहीं जीतता। बल्कि अभी या बाद में जो जीतता है वो वो होता है जो सोचता है कि वो जीत सकता है - ब्रूस ली
हमें कोरोना से डरने की नहीं है, बल्कि हमें कोरोना के विरूद्ध लडऩे की आवश्यकता है। मसलन हमारे शरीर में वह सब विद्मान है जो कि कोरोना के खिलाफ लड़ाई लडऩे में सक्षम है। बस आवश्यकता है तो हमें हमारी शक्ति को पहचानने की।
आपके अंदर पर्याप्त हार्मोन है जो एंटीबॉडी को बनने के लिए प्रेरित करते हैं
जब माता सीता जी की खोज करने के लिए सभी वानर समुद्र के किनारे आकर रूक गए थे उस समय जामवंत जी ने हनुमान जी को उनकी खोई शक्ति याद दिलाई थी |
कहइ रीछपति सुनु हनुमाना। का चुप साधि रहेहु बलवाना॥
पवन तनय बल पवन समाना। बुधि बिबेक बिग्यान निधाना॥
कवन सो काज कठिन जग माहीं। जो नहिं होइ तात तुम्ह पाहीं॥
राम काज लगि तव अवतारा। सुनतहिं भयउ पर्बताकारा॥
उन्होंने एक झटके में समुद्र पार कर लिया था। हमारे शरीर के भीतर भी सकारात्मक सोच, उत्साह का संचार, उम्मीद, आशा रूपी शक्ति विद्यमान है जो कि हमें कोरोना से जीतने में मदद करेगी।
आप जैसा सोचते हैं वैसा हो जाते हैं | उमंगे कम मत होने दीजिए |
एक राजा को उनका एक हाथी सबसे अधिक प्रिय था। वह बहुत शक्तिशाली था, बहुत आज्ञाकारी, समझदार व युद्ध-कौशल में निपुण था। बड़े-बड़े युद्धों में वह दुश्मनों की सेना उखाड़ फेंकता और राजा विजयी हो जाता। समय के साथ हाथी बूढ़ा हो गया तो राजा ने उसे युद्ध में ले जाना बंद कर दिया।
एक दिन वह पानी पीने के लिए तालाब में गया और दलदल में फसकर चिंघाडऩे लगा। हाथी को निकालने के सभी प्रत्यन किए गए लेकिन सब विफल रहे।
उसी समय गौतम बुद्ध गुजर रहे थे। राजा मार्गदर्शन के लिए उनसे अनुरोध किया। सब बातें जानने पर गौतम बुद्ध ने राजा को सुझाव दिया कि सरोवर के चारों और युद्ध के नगाड़े-रण भेरियाँ बजाए जाएँ। जैसे ही युद्ध के नगाड़े बजना प्रारंभ हुए, वैसे ही उस मृत प्राय: हाथी के हाव-भाव में बदलाव आना शुरू हो गया और वह धीरे-धीरे खड़ा हो गया | सभी हतप्रभ थे |
गौतम बुद्ध ने बताया कि हाथी की शारीरिक क्षमता में कमी नहीं थी, उसके उत्साह में कमी थी | उसके अंदर पहले जैसा माहौल पैदा किया गया, उमंगो का संचार किया गया, उसकी इम्युनिटी बढ़ गई और वह संकट से बहार आ गया।
जीवन में उत्साह बनाए रखने के लिए आवश्यक है कि मनुष्य सकारात्मक चिंतन बनाए रखें और निराशा को हावी न होने दें।
ठीक वैसे ही हम भी हमारे भीतर ही खोई शक्ति को जाग्रत करें और पूरी मस्ती के साथ हम स्वस्थ्य होने की इच्छाशक्ति को प्रबल करें तो निश्चित रूप से चिकित्सकों की सलाह अनुसार ली जाने वाली दवाईयों, आयुर्वेद से हमारी इम्युनिटी बढ़ जाएगी और हम कोरोना संकट से बच जाएंगे और यदि संक्रमित है तो स्वस्थ्य हो जाएंगे।
हमें आशाएं जगानी है सभी स्वस्थ्य एवं खुश रहेंगे | डरना अथवा डराना नहीं है बल्कि अपना काम करना है | निराशा को दूर कर आशा को अपनाना है |
मुझे विश्वास है आप प्लेसिबो इफेक्ट अच्छे से समझ गए हैं दूसरों को भी समझाएंगे | यदि यह लेख आपको पसंद आया हो तो अपने दोस्तों साथियों परिवार व रिश्तेदारों के साथ अवश्य साझा कीजिए | शायद उनके दिल में कोई बात लग जाए |
इसी के साथ जय हिंद |
आपका प्रिय.....
ढेरों शुभ कामनाओं के साथ
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