प्रिय पाठक,
यह पोस्ट बुलंद हौसले वाली अरुणिमा सिन्हा के कठिन एवं संघर्षमय जीवन की, उनके दृढ़ संकल्प की कहानी है कि कैसे उन्होंने एक पैर से विश्व के सबसे ऊंचे पर्वतों को नीचा दिखा दिया | जीवन में जितना संघर्ष होगा सफलता उतनी बड़ी होगी |
अगर लोग कष्ट से लड़कर जीत की जिद करेंगे तो आजीवन हस सकते हैं | कहते है की जब इरादे बुलंद हो तो पर्वत भी हमें रोक नहीं सकता |
अरुणिमा सिन्हा को ट्रेन से कुछ लुटेरों ने पटरी पर फेंक दिया | 49 ट्रेनें आई - गई पूरी रात उनका जख्मी शरीर ट्रैक पर पड़ा रहा उनके पैर को चूहे कुतर रहे थे | सुबह अस्पताल पहुंचाया गया | डॉक्टर ने बोला कि तुम कभी चल नहीं पाओगी | उनका एक पैर काटना पड़ा | लोगों के निराशाजनक बातों से वह परेशान हो गई और निराशा से भर गई | लोग भी निराश करते गए |
अस्पताल में ट्रीटमेंट के दौरान एक समाचार पत्र में उन्होंने पढ़ा कि माउंटेन कैसे चढ़ते हैं | अरुणिमा सिन्हा के पास दो ही रास्ते थे | या तो लाचार रह कर दूसरों के ऊपर आश्रित रहना या कुछ कर दिखाना और लोगों को यह बताना कि आदमी मन से विकलांग होता है मन से | व्यक्ति विकलांग नहीं होता बल्कि उसकी सोच विकलांग होती है |
बस क्या था उन्होंने वहीं ठान लिया अब कुछ कर दिखाना है | उनकी बेबसी, लेकिन हिम्मत उनकी ताकत बन गई | कुछ कर दिखाने का जज्बा एवं जुनून जाग गया | अब सपने में भी माउंटेनियर दिखता था | धीरे-धीरे जब बात उनके दिल में घर कर गई तब उन्होंने माउंटेनियर बनने के सपने को दिल से लगा लिया |
कहते हैं न दिमाग से बात निकल जाती है लेकिन दिल में लगी बात कभी नहीं निकलती | जरा सोचें, जब आप कुछ भूल जाते हैं तो आप बहाना बताते हैं कि अभी यह बात दिमाग से उतर गई लेकिन बचपन की भी बात जो दिल से लग जाती है वह आजीवन याद रखती है और आप हमेशा कहते हैं कि यह चैलेंज हमारे दिल से लग गया | अपने जुनून को दिल से लगाइए, दिमाग से तो निकल जाया करती है |
अब वह अपने सपने को साकार करने के लिए, अपने मिशन को पूरा करने की चाह में बछेंद्री पाल से मिली | बछेंद्री पाल ने उनका हौसला बढ़ाते हुए कहा कि आपने यदि सोच लिया तो अब आप कर लेंगी | उन्होंने उनसे पर्वत चढ़ने की बारीकियां सीखी |
Well begin is half done.
अगर किसी चीज़ को दिल से चाहो तो सारी कायनात उसे आपसे मिलाने में लग जाती है | अब उन्हें खुद को साबित करने की ललक थी, दृढ़ निश्चय था, विश्वास था, संकल्प था, प्रतिज्ञा थी, अपने जीत की तीव्र लालसा थी | उन्होंने निश्चय कर लिया कि अब तो कुछ अलग करके दिखाएंगे | उन्होंने प्रतिज्ञा खुद से जो की थी |
ढेरों कठिनाइयों के बावजूद उनका हौसला कभी भी उनके गले की हड्डी नहीं बन पाया | लोगों ने कहा छोड़ दो, तुमसे ना हो पाएगा | दोस्तों कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना |
अरुणिमा सिन्हा का मिशन एवरेस्ट शुरू हुआ। वह 52 दिन की चढ़ाई में 8848 मीटर की ऊंचाई पर माउंट एवरेस्ट पर तिरंगा झंडा फहरा दिया | उन्होंने इस पर्वत को बौना साबित कर दिखाया | लोगों को यह बता दिया कि विकलांगता मन में होती है |
इस तरह अपने बुलंद हौसले के कारण माउंट एवरेस्ट पर तिरंगा फहराकर भारत का नाम रोशन किया एवं दुनिया की पहली विकलांग महिला पर्वतारोही बन गईं।
इतना ही नहीं, अभी तो सिर्फ शुरुआत थी, अपनी विजय पताका जो अन्य जगहों पर फहराने थी | उन्होंने
इंडोनेशिया के कार्स्तेंस्ज़ पर्वत – 4,884 मीटर
अर्जेंटीना में अकोंकागुआ पर्वत – 6,961 मीटर
यूरोप के एल्ब्रुस पर्वत – 5,621 मीटर
अफ्रीका के किलिमंजारो पर्वत- 5,895 मीटर
पर्वतों पर पताका फहराया, क्योंकि उन्होंने खुद की सुनी | लोगों का सुनी होती तो एक साधारण सा जीवन बिता रही होती | शुरुआत में ढेरों मुश्किलों का सामना करना पड़ा लेकिन हिम्मत नहीं हारी और अपने जुनून को जारी रखा |
क्या खूब लिखा है कवि – सोहन लाल द्विवेदी जी ने
नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चढ़ती है
चढ़ती दीवारों पर सौ बार फ़िसलती है
मन का विश्वास रगों में साहस भरता है
चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है
मेहनत उसकी बेकार नहीं हर बार होती
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती
जीवन में कुछ भी सरल नहीं है | ईश्वर जब दुख देता है तो सुख भी देता है | यदि आपको तोड़ता है तो आप विश्वास रखो कि आपके लिए खजाना छुपा कर रखा है | बस शर्त यह है कि वह पहले आपकी परीक्षा लेगा उसके बाद आपको देगा | सफलता की कीमत तो आपको देनी ही पड़ेगी | जीवन में कुछ भी फ्री नहीं मिलता, जितना कठिन जीवन उतना बड़ा जीत |
बिना परीक्षा के जीवन में कुछ नहीं मिलता | सोने का आभूषण बनाने के लिए उसे जलाना पड़ता है | तराशने के बाद ही हीरे का मूल्य बढ़ता है | मिट्टी के घड़े को भी पीटा जाता है, उसे जलती आग में तपाया जाता है | लोहे का औजार बनाने के लिए उसे जलाया, तपाया, पीटा जाता है | एक पत्थर जिसकी यह चाह है कि उसके ऊपर फूल, माला, प्रसाद चढ़े, लोग उसके ऊपर मत्था टेके, तो उसे भी इस कठिन प्रक्रिया से गुजरना होगा | उसे भी छेनी हथौड़ी का घाव सहन करना होगा | इन सब को कुछ पाने के लिए एक कठिन तपस्या से गुजरना पड़ता है | आपको अगले लेख में दो पत्थरों की पीड़ा मिल जाएगी कृपया उसे अवश्य पढ़िएगा |
आपको कुछ बनना है तो मरुस्थल के पेड़ की तरह बनिए जिसे पानी कई दिनों नहीं मिलता है तो भी वह अपने आप को इस कठिन समस्या के अनुसार ढाल लेता है | जीत उसी की होती है जो आखरी तक टिका रहता है |
एक बात आप जान लो, जब आप टूट जाना / परेशान हो जाना तो आप जान जाना कि आप कुछ बड़ा करने वाले हो, कुछ पाने वाले हो |
जब फसल टूटती है तो अनाज और बीज बनता है, मिट्टी टूटती है तो खेत बनते हैं, बीज जब टूटता है तो नया पौधा बनता है, जब बादल टूटते हैं तो बारिश होती है। इसलिए जब भी अपने को टूटा हुआ महसूस करें तो आप समझ लेना कि आपका समय बदलने वाला है | हर रात के बाद सुबह होती ही होती है |
जब तक न सफल हो, नींद चैन को त्यागो तुम,
संघर्ष का मैदान छोड़ कर मत भागो तुम
कवि – सोहन लाल द्विवेदी |
आप ध्यान दें असफलता बड़ी चालाक है, यह अक्सर लोगों के जिंदगी में उसी समय आया करती है जब लोग सफलता के बहुत नजदीक होते हैं |
हमें कुछ पाने के लिए सपने देखने होते हैं और हमें उस सपने को पूरा करने के लिए नींद का त्याग करना पड़ेगा | स्वामी विवेकानंद करते हैं कि जब तक आप किसी चीज को पाने के लिए पागल नहीं बन जाते तब तक आपको वहां नहीं मिल सकती | सफलता का एकमात्र नियम है कि अगर आपने एक बार शुरू किया तो जब तक खत्म न कर लो तब तक मत रुकना |
जिस प्रकार थोड़ा गड्ढा खोदने से पानी न मिलने पर पुनः दूसरा, तीसरा, चौथा गड्ढा नहीं खोदा जाता, बल्कि उसी गड्ढे को और गहरा किया जाता है | उसी प्रकार यह असफलता भी है | बार-बार असफल होने पर हमें अपनी कमियों को बार-बार ढूंढना है और उसे तब तक पूरा करते रहना है, सुधार करते रहना है जब तक कि आप सफल न हो जाओ | न कि बार-बार अपने लक्ष्य को बदलते रहना है | आप जितने बार लक्ष्य बदलोगे उतनी बार आपकी मेहनत बर्बाद जाएगी और एक समय के बाद आप निराश हो जाओगे और असफलता को ही अपनी नियति समझ लोगे जबकि की सफलता आपके पास थी |
यह सत्य है कि "सपने वो नहीं है जो हम नींद में देखते है सपने वो है जो हमको नींद नहीं आने देते"- डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम |
दोस्तों, रसायन शास्त्र का एक नियम है, जो जिंदगी पर भी लागू होता है। जब कोई अणु टूटकर पुन: अपनी पूर्व अवस्था में आता है तो वह पहले से अधिक मज़बूत होता है। इसी तरह हम जब किसी परेशानी का सामना करने के बाद पहले से अधिक मज़बूत हो जाते हैं और जीवन में और भी तरक्की करते हैं।
अंततः यही कहूंगा कि मंजिल उन्हीं को मिलती है, जिनके सपनों में जान होती है, पंख से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है|
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इसी के साथ जय हिंद |
1 टिप्पणियाँ
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