अपर्याप्तं तदस्माकं बलं भीष्माभिरक्षितम् ।
पर्याप्तं त्विदमेतेषां बलं भीमाभिरक्षितम् ।।१०।।
अपर्याप्तम्, तत्, अस्माकम्, बलम्, भीष्माभिरक्षितम्, पर्याप्तम्, तु, इदम्, एतेषाम्, बलम्, भीमाभिरक्षितम् ।।१०।।
भीष्माभिरक्षितम् = भीष्मपितामह द्वारा रक्षित, अपर्याप्तम् = सब प्रकार से अजेय, एतेषाम् = इन लोगों की
हमारी शक्ति अपरिमेय है और हम सब पितामह द्वारा भलीभाँति संरक्षित हैं, जबकि पाण्डवों की शक्ति भीम द्वारा भलीभाँति संरक्षित होकर भी सीमित है।
अर्थ विश्लेषण -
दुर्योधन के पास चार अक्षौहिणी सेना अधिक थी । वह कहता है कि हमारी सेना, जो भीष्म पितामह के द्वारा रक्षित है, उसकी शक्ति पर्याप्त से भी ऊपर अर्थात अपर्याप्त है । अर्थात सुपर से भी ऊपर है । भीष्म ने स्वयं परशुराम को हरा दिया था । दुर्योधन यहां दोहरे अर्थ वाले शब्दों का प्रयोग करता है अपर्याप्त का मतलब पर्याप्त न होना होता है । वह अंदर ही अंदर जानता है कि उसकी सेना अत्यंत कमजोर है । परंतु यहां द्रोण को बताते समय दुर्योधन का आशय पर्याप्त से भी ज्यादा है ।
वह भीष्माभिरक्षितम् = भीष्म पितामह द्वारा रक्षित बताकर भीष्म को चढ़ा रहा था । अब भीष्म भी फूले नहीं सामने वाले थे । श्लोक 12 में भीष्म ने दुर्योधन को खुश करने के लिए शंख बजाएं।
दुर्योधन भीम की सेना में पर्याप्त बल बताया तथा वह पांडवों की सेना में भीम का नाम बार-बार लेता है क्योंकि वह भीम से बहुत जलता था एवं उसे पता था कि भीम एक दिन उसका जांघ तोड़ देगा और उसके सभी भाइयों को मारेगा । भीम को विष देने के बावजूद वह बच गया था तथा उसमें हजारों हाथियों का बल आ गया । भीम का नाम सुनते ही उसे दिन में तारे नजर आते थे । वह भीम के नाम से ही भयभीत हो जाता था । इसीलिए उसने भीष्म एवं भीम की तुलना की है । दुर्योधन भीम के द्वारा रक्षित सेना के बारे में बताना चाहता था की भीम सिर्फ शरीर से भारी हैं, दिमाग से खाली ।
सीख -
भीष्म और भीम के में बहुत अंतर था फिर भी दुर्योधन अपनी कमजोरी को छुपाते हुए भीष्म की तुलना भीम से कर रहा था । अर्थात स्वयं को समझा रहा था जैसे हम अपनी कमजोरी को छिपाते हुए अपने आप को समझाते हैं ।
हम भी कमजोरियों को ऐसे छिपाते है जैसे शिकार होने के डर से शुतुरमुर्ग अपना सिर रेत में छिपा लेता है और उसे लगता है कि अब उसे कोई नही देख रहा है ।
हम भी जब परीक्षा में फेल हो जाते हैं तब हम अपने आप को समझाने के लिए अपनी तुलना अपने समकक्ष पास हुए अभ्यर्थी से न करके बिल्कुल असाधारण अभ्यर्थी से करते हैं ।
हम ढेर सारे बहाने बनाते हैं जैसे -
हमसे न हो पाएगा.... हमारी उम्र ही नहीं थी.... बहुत कठिन है.... हमारी परिस्थिति ने साथ नहीं दिया..... लोग मुझसे जलते थे....परिस्थितियां अलग थी.... हम गरीब परिवार से हैं.... भाग्य ने साथ नहीं दिया...उस समय परिस्थितियां कुछ और थी.... हमारे बस में नहीं है.... हम छोटे शहर से हैं.... लोग क्या सोचेंगे....मेरे घरवालों ने साथ नहीं दिया इत्यादि - इत्यादि।
खैर स्वयं को झूठी सांत्वना देने से क्या लाभ ।
मिलते है अगले श्लोक में । जै श्री कृष्ण!!!
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