अन्ये च बहवः शूरा मदर्थे त्यक्तजीविताः ⁠। नानाशस्त्रप्रहरणाः सर्वे युद्धविशारदाः ⁠।⁠।⁠९⁠।⁠। 

शूराः = शूरवीर, मदर्थे = मेरे लिये, त्यक्तजीविताः = अपने जीनेकी इच्छाका भी त्याग कर दिया है, युद्धविशारदाः = युद्धकलामें अत्यन्त चतुर हैं।

दुर्योधन प्रमुख लोगों का नाम श्लोक 7, 8 में बताता है परंतु शल्य, बाह्लीक, भगदत्त, कृतवर्मा और जयद्रथ इत्यादि महारथियों के नाम जो उसने नहीं लिया था, जो उसकी ओर जान निछावर करते थे और उसे जिनपर बहुत गर्व था, उनकी ओर दिखाकर कहता है कि -

“और भी मेरे लिये जीवन की आशा त्याग देने वाले बहुत से शूरवीर अनेक प्रकार के शस्त्र-अस्त्रों से सुसज्जित और सब युद्ध में निपुण हैं”।⁠।⁠९⁠।⁠।

सीख

सोते हुए को जगाया जा सकता है पर सोने का बहाना करने वाले को नहीं । जब पतींगे की जब मौत आती है तब वह दीपक की ओर भागता है, जब दीपक को बुझना होता है तब तेज फड़फड़ाता है । जब गीदड़ की मौत आती है तब वह शहर की ओर भागता है ।

बस दुर्योधन का यही हाल था । वह भी फड़फड़ा रहा था । उसके भी पर निकल रहे थे और खूब उचक रहा था । कमजोर और डरपोक जिस तरह शेखी बघारते है, वह भी बघार रहा था और तिल का ताड़ बना रहा था ज़ैसे थोथा चना बजे घना । 

उसे इस बात का अन्दाज़ न था कि जो लोग भी युद्ध में साथ खड़े है भीष्म पितामह के कारण खड़े है ।

अनंत शुभ कामनाओं के साथ ! फिर मिलते हैं अगले लेख / सीरीज में ।