अस्माकं तु विशिष्टा ये तान्निबोध द्विजोत्तम ⁠। 

नायका मम सैन्यस्य सञ्ज्ञार्थं तान्ब्रवीमि ते ⁠।⁠।⁠७⁠।⁠। 

अस्माकम्, तु, विशिष्टाः, ये, तान्, निबोध, द्विजोत्तम, नायकाः, मम, सैन्यस्य, सञ्ज्ञार्थम्, तान्, ब्रवीमि, ते ⁠।⁠।⁠७⁠।⁠। 

द्विजोत्तम = हे ब्राह्मणश्रेष्ठ!, अस्माकम् = अपने पक्षमें, तु = जो, विशिष्टाः = प्रधान, तान् = उनको, निबोध = समझ लीजिये, ते = आपकी, सञ्ज्ञार्थम् = जानकारी के लिये, मम = मेरी, सैन्यस्य = सेनाके, नायकाः = सेनापति, तान् = उनको, ब्रवीमि = बतलाता हूँ।

अर्थ - 

हे ब्राह्मणश्रेष्ठ! अपने पक्षमें भी जो प्रधान हैं, उनको आप समझ लीजिये। आपकी जानकारीके लिये मेरी सेनाके जो-जो सेनापति हैं, उनको बतलाता हूँ ⁠।⁠।⁠७⁠।⁠।

4, 5 और 6 श्लोक में दुर्योधन गुरु द्रोणाचार्य को पांडवों की ओर के सेना में कुछ प्रमुख को दुर्भावना और कुटिलता के साथ मिर्च मसाला लगा कर बताता है परंतु उसे तुरंत ध्यान आता है कि कहीं गुरु द्रोण डर न जाए अतः ऐसा विचार आते ही दुर्योधन आगे के तीन श्लोकोंमें क्रमशः 7, 8 और 9 में अपनी सेना की विशेषता बताता है और द्रोणाचार्य को विश्वास दिलाता है कि हमारे पक्षमें जितनी विशेषता है, उतनी पाण्डवों की सेना में नहीं है। हम उनपर सहज ही विजय प्राप्त कर सकते हैं। उसकी तरफ बहुत शूरवीर है और गुरु द्रोण को चिंता करने की जरूरत नहीं है बस तन्मयता से युद्ध करने की जरूरत है ।

सीख़ - 

जब हमारे पास सैकड़ों निराशाओं का वातावरण हो फिर भी हमें आशाओं को कभी नहीं त्यागना चाहिए, जैसा दुर्योधन कर रहा था । उसे पता था कि पांडवों की सेना में सभी सद्गुणी लोग हैं / स्वयं धर्म के संस्थापक श्री कृष्ण है ।

परंतु गुरु द्रोण का डर हटाने के लिए वह अपने अच्छाइयों / अपने स्स्ट्रेंथ के बारे में बात कर रहा था कि “अस्माकं तु विशिष्टा ये तान्निबोध द्विजोत्तम”- अर्थात हमारे सेना में भी कुछ कम नहीं हैं जो मैं आपको बताता हूँ ।

वो कहते हैं न कि डूबते को तिनके का सहारा । भगवान ने हमें क्या नहीं दिया इस पर न सोचकर बल्कि हमें क्या दिया है इस पर फ़ोकस करना चाहिए जो हमें इस श्लोक से सीखने को मिलती है ।

दुर्योधन स्ट्रेंथ, वीकनेस, ऑपोर्ट्यूनिटी, थ्रेट (SWOT) सब विश्लेषण किया यह अलग बात कि उसने आपर्टूनिटी कॉस्ट में नारायणी सेना तो प्राप्त करली पर नारायण को खो दिया । होता है न मोर गेन, मोर रिस्क ।

लेकिन एक चीज है, वह है ओवर कॉन्फिडेंस, जो नहीं होना चाहिये ।

आइए एक लाइव उदाहरण देखते है -

एक समोसे वाले के हज़ार समोसे रोज़ बिक जाते थे । महीने का 70 - 75 हज़ार की मुनाफ़ा होता था । उसने बेटे को MBA के लिए भेजा । अब बेटे ने पिता को बताया कि मंदी आने वाली है, समोसे कम बनाया करो । अब वह 800 बनाने लगा । समोसे कम तो ग्राहक कम । बेटे ने बताया कि अब 600 ही बनाये । आख़िर बेटा इकोनॉमिस्ट जो बन रहा था । अब पर्याय समोसे न होने से ग्राहक वापस जाने लगे ।  यही सिलसिला चलता रहा और अब 200 समोसे में भी बच जाते । पिता ने बेटे के पीठ पर थपथपाते हुए बोला, बेटा तुम सच में सही बोल रहे थे मंदी आ गई है । समय से न बताते तो बहुत नुक़सान जो जाता !!!

तो अब सकारात्मकता से अच्छे से विश्लेषण करते रहिए ! राधे - राधे !!!