भवान्भीष्मश्च कर्णश्च कृपश्च समितिञ्जयः ⁠। 

अश्वत्थामा विकर्णश्च सौमदत्तिस्तथैव च ⁠।⁠।⁠८⁠।⁠। 

भवान्, भीष्मः, च, कर्णः, च, कृपः, च, समितिञ्जयः, अश्वत्थामा, विकर्णः, च, सौमदत्तिः, तथा, एव, च ⁠।⁠।⁠८⁠।⁠।

भवान् = आप द्रोणाचार्य स्वयं, समितिञ्जयः = संग्राम विजयी, सौमदत्तिः = सोमदत्त के पुत्र भूरिश्रवा

अर्थात् - आप द्रोणाचार्य और पितामह भीष्म, कर्ण और संग्रामविजयी कृपाचार्य, वैसे ही अश्वत्थामा, विकर्ण और सोमदत्तका पुत्र भूरिश्रवा ⁠।⁠।⁠८⁠।⁠।

पांडवों की सुव्यस्थित और सुदृढ़ सेना और महारथियों को देखकर दुर्योधन की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई । 

दुर्योधन गुरु द्रोणाचार्य को पांडवों की ओर के सेना की महानता को बताता है परंतु अचानक उसे डर हो जाता है कि कहीं गुरु द्रोण डर न जाएं तब वह अपनी सेना के बारे में बखान करता है जो तीन श्लोकों क्रमशः 7, 8 और 9 में है । 

दुर्योधन गुरु द्रोण का हौसला बढ़ाने के लिए सबसे पहले उनका स्वयं का नाम लेता है । फिर बताता है कि इनमें पितामह को तो स्वयं इच्छामृत्यु वरदान प्राप्त है अतः उन्हें मारना असंभव है । उनका पुत्र अश्वत्थामा स्वयं चिरंजीवी है । कृपाचार्य स्वयं चिरंजीवी हैं तथा अस्त्र शस्त्र के महान ज्ञाता हैं। महादानी कर्ण के पास इंद्र का ब्रह्मास्त्र है और उसके वार से कोई बच ही नहीं सकता । अगर धर्म की बात करें तो विकर्ण और सोमदत्तका पुत्र भूरिश्रवा स्वयं महान धर्मात्मा हैं ।

दुर्योधन इन सभी ऐसे लोगों का नाम लेकर उत्तेजित कर रहा था जो हमेशा विजयी होते रहे थे ।

सीख - 

दुर्योधन भले ही ग़लत था लेकिन फिर भी हमें उससे सीख लेनी चाहिए। किसी की 99 बुराइयों से क्या मतलब, हमें तो 01 अच्छाई लेना है । हमारे जीवन में भी बहुत सारी समस्याएं रहती है परंतु हमारे पास अवसर भी होता है और हमें उन अवसरों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए ।

यह हम पर निर्भर करता है कि हम गिलास आधा भरा या आधा ख़ाली देखते हैं ।

कुछ लोगों को आधा गिलास खाली ही दिखाई देता है और उन्हें लगता है कि धूप सिर्फ परछाई बनाने के लिए निकलती है । वह अवसर में आपदा तलाशते रहते है और समाधान में समस्या ।

दुर्योधन को एक कुशल राजनीतिज्ञ होने के कारण पता था कि शत्रु को कभी भी कमज़ोर नहीं समझना चाहिए । 

इसी तरह से हमारे जीवन में भी जो छोटी-बड़ी समस्याएं हैं और आती है और उनके लिए भी एक अच्छी रणनीति बनानी चाहिए । साकारात्मकता को पहले देखना चाहिए ।

एक छोटा सा घाव भी नासूर बन सकता है यदि वह समय से ठीक नहीं किया गया । 

एक छोटी सी छेद भी नाव को डुबा सकता है । 

एक छोटा सा कंकड़ भी आपके खाने का पूरा मज़ा किरकिरा कर सकता है । 

एक छोटी सी बात आपका जीवन बदल सकता है ।राजा बिंदुसार से बैर के कारण अंगुलीमान डाकू ने 1000 उंगली काटने का प्रण लिया । महात्मा बुद्ध के एक शब्द ने उसका हृदय परिवर्तन कर दिया | 

बात दिल में लगनी चाहिए, दिमाग में नहीं । दिमाग की बात तुरंत निकल जाती है । और एक बात जो दिल पर लग जाती है वह आजीवन याद रहती है । जैसे उसने 10 साल पहले मुझे भला - बुरा कहा और यह बात मुझे दिल से लग गई । पत्नी की बात तो तुलसीदास जी को भी लग गई और उन्होंने रामायण लिख डाला । 

महाभारत का हर पात्र हमे कुछ न कुछ सिखाता है । बस ज़रूरत है सीखने योग्य सीखने की ।