पेंडुलम एक आलोचनात्मक लेख आज के युवाओं के ऊपर है कि भटकाव कहा, क्यों और कैसे है ।

यदि आपका बच्चा, करीबी का बच्चा अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर पा रहा है तो अवश्य पढ़े । यदि आपको लेख में सच्चाई दिखती है तो आगे भी अग्रेषित करे ।

तो चलिए शुरू करते है –

पेंडुलम, जी हां, आपने सही पढ़ा, पेंडुलम, मैं पेंडुलम ही हूं । जैसे घड़ी की मशीन ही पेंडुलम की दिशा तय करती है वैसे ही मेरी भी दिशा और दशा तय करने का अधिकार मुझे नहीं है । कभी मेरे पेरेंट्स तो कभी रिश्तेदार, कभी दोस्त के पापा तो कभी पड़ोसी, सभी मेरी दिशा तय करने में लगे रहते है । अभी अभी मैंने 12वी पास किया है । मैं तो सबके लिए मशीन ही हूं । बस मुझे कमांड दिया जाता है बेटा तुझे डॉक्टर बनना है, बेटा तुझे इंजीनियर बनना है, भाई तुझे कंप्यूटर पढ़ना है वगैरह–वगैरह । हां, सच है, मुझे मेरा करियर चुनने का अधिकार ही नहीं है । और सच बताऊं तो मेरे ऊपर ज्यादा दबाव से मेरी निर्णय लेने की क्षमता ही खत्म हो गई है । 

ताज्जुब तो मुझे होता है जब आठवी फेल बगल वाले अंकल ज्ञान देते हैं बेटा तुम्हारा पर्सेंटेज 80 नही आया । आज के बच्चे । ओह–ओह !!! अब अंकल को कौन समझाए !!!

तभी ग्रेजुएट किए हुए सब्जी का ठेला लगाने वाले अंकल, जिन्होंने कॉलेज में खूब बंक मारा था, अपना सारा ज्ञान पिताजी पर चिपका दिया - भाई साहब, क्यों पैसे बरबाद कर रहे है । पढ़ने – ओढ़ने से कुछ थोड़े न होता है । देख रहे है, अपने जमाने के बहुत अच्छे तीसमार रहे है हम । लगी नौकरी ? आज सब्जी का ठेला लगा रहे है । काहे पैसा बरबाद कर रहे है । हमारी माने तो इसको मोबाइल बनाना, ऑटो चलाना सीखा दीजिए । ठेला–ओला दिलवा दीजिए । 

तभी कक्षा 3 पास किए नाना के पड़ोसी बोल पड़े, हम मिडिल क्लास से है । लोग क्या सोचेंगे ? एक काम करिए, लड़के को मुंबई भेज दीजिए, वो बगल वाले पड़ोसी का दामाद है वहा । सुपरवाइजर की नौकरी है । भले 12000 मिलेगा, कौन जानता है । बता देंगे लड़का मैनेजर है ।

अब किसको और क्या बोले । सभी हमारे भाग्य विधाता क्या–क्या निर्णय ले रहे है । और हम पेंडुलम बने झूल रहे है । कभी दाए तो कभी बांए ।

हमको तो अधिकार ही नहीं है निर्णय लेने का । मेरी मां हमेशा बोला करती थी कि मेरा बिटवा / हमार मुन्ना कितना कोमल है । इसे मैं अपने आंखों से दूर नहीं जाने दूंगी । सच में, अब मैं कोमल हो चुका हूं । अब मैं डरपोक भी हो चुका हूं क्योंकि मुझे कभी बाहर निकलने ही नहीं दिया । 

यही कहानी अधिकांशतः मिडिल क्लास बच्चो की है । वे दिशाहीन या तो है या कर दिए गए है । उनके निर्णय लेने की क्षमता ही खत्म कर दी गई है । उन्हें ज्ञान देने वाले भी वही हैं जिन्होंने जीवन में कुछ भी नहीं किया है । 

बेचारे को तो अपनी ताकत का पता ही नहीं है । वह बेचारा उन बंदरों की तरह मिथक में रह गया है । 

एक चिड़ियाघर में 20 बंदरों पर रिसर्च किया गया । बाहर केले – चने रख दिए गए । जैसे बंदर आते, उन पर पानी डाला जाता और कुछ दिनों बाद अब बंदर आना ही छोड़ दिए । कितने भी केले – चने बाहर पड़े हो वह उधर देखते भी नहीं थे । एक दिन एक बंदर को बाहर निकाल कर नए बंदर को डाल दिया गया । उस नए बंदर को क्या पता कि उसे पर पानी पड़ेगा । जैसे ही वह केला और चना लेने के लिए आया अन्य 19 बंदर उसे खींचने लगे । कुछ दिनों बाद उसकी आदत बन गई और वह स्वयं खाने के पास नहीं जाता था । इसी क्रम में धीरे-धीरे सभी बंदर बदल दिए गए और एक समय ऐसा आया जब चिड़ियाघर के सभी 20 बंदर नए थे । आश्चर्य तो तब हुआ जब, अब एक भी बंदर खाने के पास नहीं जाता था जबकि वास्तव में उनमें से किसी के ऊपर भी पानी नहीं फेंका गया था । धीरे-धीरे उनके दिमाग में ऐसा बीज बो दिया गया कि केले और चने के पास जाना ही नहीं है, जबकि उनमें से किसी का स्वयं के ऊपर पानी फेंका जाने जैसा कोई अनुभव नहीं था ।

बस हमारे बच्चों के साथ भी ऐसा हो रहा है उन्हें भी इसी तरह की अवधारणा में मत बांधकर रखिए ।

ध्यान रहे !!! आप अपने बच्चों के लिए कितने भी संवेदनशील क्यों न हो, परंतु जमाना उससे उतने ही बेरुखी से पेश आएगी । यह आपका बच्चा है, जमाने का नहीं । उससे लड़ने दीजिए !! उसे तैरने दीजिए !! उसे सीखने दीजिए !! क्योंकि आप आजीवन उसके साथ नहीं रह सकते । उसे उसका निर्णय स्वयं लेने दीजिए और उसमें सहयोग भी कीजिए ।

कोई ज्ञान देता है की पढ़ाई मत करो। कोई बोलता है कि तुमने गलत स्ट्रीम में पढ़ाई चालू कर दी । बेचारा युवा शब्दों के माया जाल में फंस जाता है । भई, कहना क्या चाहते हो ?? 

वास्तव में अब उसे समझ में ही नहीं आता की क्या करना है । बेचारे का मनोबल तो ऐसे तोड़ा जाता है जैसे रेत से बना घर। वह बेचारा चकरघिन्नी बनकर रह जाता है । उसकी लालसा को ऐसे साफ किया गया जैसे कंजूस आम की गुठली साफ किया करते है । बहुत अच्छे से निपटा दिए गए ।

उसने तो अभी हाल में तैयारी शुरू ही की थी कि तभी पड़ोस वाले अंकल ने ज्ञान दे दिया की बेटा बिना घूस के तो नौकरी ही नहीं लगती और पड़ोस वाली आंटी ने बोला बेटा नौकरी कहां मिलने वाली है । बस अब और कंफ्यूज हो गया बेचारा, जो पढ़ाई शुरू की थी और 70% कर भी ली थी उसे छोड़कर कंप्यूटर कोर्स करना चालू कर दिया । तभी फूफा जी आ गए और बोला कि मेरा बेटा तो बड़ा होनहार है । तुम आई ए एस – वाई ए एस क्यों नही करते । मम्मी ने बोला बेटा फौरन प्रयागराज चले जाओ कोचिंग कर लो । दो साल बाद, बेटा बैंक की तैयारी करो । एक साल बाद बेटा ये करो, बेटा वो करो । 

अरे कहना क्या चाहते हो ?

देखते ही देखते मैं 28 साल का हो गया और घड़ी के पेंडुलम की तरह कभी दाएं झूलता तो कभी बाएं । असल में मुझे पता ही नहीं चला की करना क्या है । और आखरी में सिर्फ यह पछतावा रह गया कि मैंने अपने मन की क्यों नहीं सुनी । 

हां, एक गलती मुझसे और हुई थी । जब मैं 18 साल का था तब पढ़ाई के बहाने अपने गर्लफ्रेंड के साथ कॉलेज से खूब बंक मार रहा था । रोज मूवी, डेट और शादी के हसीन सपने देख रहा था । यह प्यार, मोहब्बत, इश्क, लव, जुनून काश पढ़ाई के समय नहीं हुआ होता तो आज नौकरी भी होती और वह भी । अब मुझे समय का पता चल रहा है । अब तो उसके नाम का टैटू भी मिटवाना पड़ा । शादी जो होने वाली है । दूसरी लड़की के साथ । काश पढ़ाई के समय पढ़ाई किया होता तो आज शादी भी अच्छे से हुई होती और आज मैं 10000 की नौकरी नहीं कर रहा होता । 

काश मैंने अपने मन की बात सुनी होती । काश मैंने मन लगाकर पढ़ाई की होती । काश मैंने क्लास से बंक नहीं मारा होता । काश मेरा पढ़ाई में कंसंट्रेशन होता । काश मैं आठवीं फेल अंकल की बात नहीं सुनी होती । काश मैं यह नहीं सुना होता कि बिना घुस के नौकरी नहीं मिलती । काश मैं यह नहीं सुना होता कि तुमसे न हो पाएगा तो आज बात कुछ और होती । खैर अब समय बीत चुका है । अब सिर्फ हमारे पास काश ही बचा हुआ है । काश ये, काश वो....

मेरी अवधारणा भी सुनी सुनाई बातों पर टिक गई । जैसे एक बाज ने मुर्गी के अंडे के साथ अंडा दे दिया । समय बीता और दोनों अंडे से चूजे निकले । पर दोनों के आकार व व्यवहार में अंतर था । दोनों साथ-साथ बड़े हुए । एक बोलता, मां मुझे ऊपर उड़ाना है । तो मां बोलती चुप रह !! तू मुर्गी का बच्चा है । तू कैसे उड़ सकता है ? 

उसे तो पता ही नहीं था कि वह मुर्गी का नहीं बल्कि बाज का बच्चा है । उसे अपनी ताकत का पता ही नहीं था । मुर्गी का बच्चा तो उसे मुर्गी ने बना दिया । समय बीतता गया । एक समय उसने आकाश में एक बाज को उड़ते देखा । मां के लाख समझाने के बावजूद भी उसने अपने पंख जोर से फड़फड़ाए और कुछ ही देर में उसे ऐसा एहसास हुआ जैसे उसके पास असीम ताकत आ गई हो । फिर क्या, अब वह आकाश में मिलों ऊंचाई पर था । 

काश !!! हमें भी किसी ने न रोका होता या हमने भी किसी की बात नहीं सुनी होती तो आज हम भी आकाश में उड़ रहे होते । और ₹10000 की नौकरी नहीं कर रहे होते ।

मेरे दादा बिल्कुल सही कहते थे बेटा जीवन में अभी त्याग कर लो बाद में एंजॉय करो या अभी इंजॉय करो और पूरे जीवन त्याग करते रहना । अब युवा के पास एक ही पछतावा रहता है, कास मैं समय पर ध्यान दिया होता ।

जी हां, अब हम सही मुद्दे पर आ रहे हैं और वह है समय का महत्व । महत्वपूर्ण यह नहीं है कि आपने क्या किया है बल्कि महत्वपूर्ण यह है कि आपने कब, क्या किया है । यदि आप शुरू के तीन-चार साल त्याग और परिश्रम कर ली तथा अपना कंसंट्रेशन से तैयारी करें और अपना करियर चुने करें तो आप पूरे जीवन सफलता का लुफ्त उठा सकते हैं । या शुरू के तीन चार साल एंजॉय करके पूरी जीवन अभावग्रस्त बिता सकते हैं ।

त्याग और समय की बर्बादी दोनों सिक्के के दो पहलू हैं । यदि आप शुरू में त्याग करते हैं तो आजीवन इंजॉय करते हैं और शुरू में यदि आप समय बर्बाद करते हैं तो आपको समय अवश्य बर्बाद करके छोड़ेगा । समय बदला लेता ही लेता है ।

हते हैं समय बीत पुनि का पछताने, का वर्षा जब कृषि सुखाने । 

दोस्तों, मैं आज के युवा से आते-जाते बात करता रहता हूं तथा उपरोक्त कहानी अक्सर उन में पाता हूं ।

इस लेख के माध्यम से आपको बस इतना ही बताना चाहता हूं कि कृपया 


१. अपने मन की सुने 

२. सुनी सुनाई बातों पर विश्वास न करें 

३. अज्ञानी लोगों से ज्ञान न ले 

४. गोल सेट करें 

५. अपने करियर इत्यादि पर अच्छे से रिसर्च करें और फिर उससे विरत न हों 

६. बीच-बीच में अपने गोल में परिवर्तन ना करें 

७. दृढ़ निश्चय करें 

८. संकल्पवान रहे । 


Just set your goal and hit your goal. Your Goal must be focused as Arjun focused only the eye of the fish. If you take the Goal casual, it will bring casualty. The goal must be high and divided into small and achievable target. The target must be set stage wise stage. One day, the goal will be in your feet. 


जब तक न सफल हो, नींद – चैन को त्यागो तुम ।

संघर्षों का मैदान छोड़ मत भागो तुम ॥

अगर बात लग जाए तो कमेंट जरुर करे ।

आज ही विचार कीजिए कि क्या आप पेंडुलम तो नही है, जो चलता तो खूब है पर जाता कही नहीं !!!

धन्यवाद।।