तस्य संजनयन् हर्षं कुरुवृद्धः पितामहः ⁠। 

सिंहनादं विनद्योच्चैः शंखं दध्मौ प्रतापवान् ⁠।⁠।⁠१२⁠।⁠।

तस्य, सञ्जनयन्, हर्षम्, कुरुवृद्धः, पितामहः, सिंहनादम्, विनद्य, उच्चैः, शङ्खम्, दध्मौ, प्रतापवान् ⁠।⁠।⁠१२⁠।⁠।

तस्य = उस दुर्योधन के, सञ्जनयन् = उत्पन्न करते हुए, हर्षम् = हृदय में हर्ष, विनद्य = गरजकर, उच्चैः = जोर से, दध्मौ = बजाया

अर्थात् - 

सबसे वृद्ध महाप्रतापी भीष्म पितामह जिन्होंने स्वयं परशुराम को हराया था, जब उन्होंने देखा की गुरु द्रोण दुर्योधन की बात पर ध्यान नहीं दे रहे हैं और वह निराश हो रहा है तब उसका उत्साहवर्धन करने के लिए तथा उसको खुश करते हुए बड़े ऊंचे आवाज में शेर की दहाड़ के समान तेज गर्जना कर शंख बजाया ⁠।⁠।⁠१२⁠।⁠।

व्याख्या - 

देखा जाए तो 11वें श्लोक में दुर्योधन ने कहा था कि सभी लोग शिखंडी से भीष्म की रक्षा करिए । इस कारण भीष्म बहुत प्रभावित हो गए और दुर्योधन को खुश करने के लिए शंख बजाया । उन्हें पहले ही उसपर लगाम लगाना चाहिए था और उसके पर कुतर देना था जिससे वह इतना बिगड़ैल न हो पाता, उल्टा वह उसे सह दे रहे थे ।

ख़ैर, बेचारे भीष्म !!!

सीख़ -

जरा सोचें, जब आपका बेटा रोने लगे कि हमें दवाई नहीं खाना है तो क्या आप मानते हो उसकी बात को ? नहीं न, बल्कि आप उसकी मरम्मत कर देते हैं। ज़रूरत के अनुसार कूटना ज़रूरी है क्योंकि - 

सोने का आभूषण बनाने के लिए उसे जलाना पड़ता है ।

तराशने के बाद ही हीरे का मूल्य बढ़ता है ।

मिट्टी के घड़े को भी पीटा जाता है, उसे जलती आग में तपाया जाता है ।

लोहे का औजार बनाने के लिए उसे जलाया, तपाया, पीटा जाता है ।

एक पत्थर जिसकी यह चाह है कि उसके ऊपर फूल, माला, प्रसाद चढ़े, लोग उसके ऊपर मत्था टेके, तो उसे भी इस कठिन प्रक्रिया से गुजरना होगा | उसे भी छेनी हथौड़ी का घाव सहन करना होगा | सब को कुछ पाने के लिए एक कठिन तपस्या से गुजरना पड़ता है...

कभी कभी हमे शख़्ती से पेश आना चाहिये क्योंकि यह बच्चे का भविष्य तय करता है ।

जब फसल टूटती है तो अनाज और बीज बनता है । 

मिट्टी टूटती है तो खेत बनते हैं ।

बीज जब टूटता है तो नया पौधा बनता है ।

जब बादल टूटते हैं तो बारिश होती है। 

जब आप अपने को टूटा हुआ महसूस करें तो आप समझ लेना कि कुछ अच्छा होने वाला है ।

राम के संघर्ष नए जीवन ने ही उन्हें  युवराज राम से मर्यादा पुरुषोत्तम राम बनाया और कृष्ण के संघर्षों ने ही उन्हें श्रीकृष्ण बनाया । 

बोलना है मैंने कठिन तपस्या के बाद ही बुद्ध बुद्ध से महात्मा बुद्ध बने ।

मजबूरी थी कि दुर्योधन को बढ़ावा मिला, ग़लत होने के बावजूद स्नेह मिला जिससे हमे बचना चाहिए ।

अब भीष्म पितामह यही गलती कर रहे थे कुरु वंश से मोह के कारण वह सांप को दूध पिला रहे थे और उसे दुर्योधन का साथ दे रहे थे ।

ख़ैर आपको निर्णय लेना है कि आप भी तो नहीं ज़रूरत से ज़्यादा सह दे रहे है ।

मिलते है अगले श्लोक में । तब तक के लिये राधे - राधे ।